Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापासू
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सनत्कुमार नामक तीसरे देवलोक के देव अनन्तर च्यवन करके कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! इनकी वक्तव्यता असुरकुमारों के उपपात सम्बन्धी वक्तव्यता के समान समझनी चाहिए। विशेषता यह है कि एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार की वक्तव्यता सहस्रार देवों तक की कहनी चाहिए।
विवेचन - भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और सौधर्म और ईशान अर्थात् पहले और दूसरे देवलोक के देव वहाँ से चवकर एकेन्द्रियों में अर्थात् पृथ्वी, पानी, वनस्पति में आकर उत्पन्न हो सकते हैं इसके आगे के अर्थात् सनत्कुमार आदि देवलोकों के देव एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते हैं । इसी प्रकार बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रियों में भी उत्पन्न नहीं होते हैं । किन्तु तिर्यंच पंचेन्द्रियों में उत्पन्न हो सकते हैं।
आणय जाव अणुत्तरोववाइया देवा एवं चेव, णवरं णो तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, मणुस्सेसु पज्जत्तग-संखिज्जवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेसु उववज्जंति ॥ ६ दारं ॥ ३२३ ॥
भावार्थ - आनत नामक नववें देवलोक के देवों से लेकर अनुत्तरौपपातिक देवों तक वक्तव्यता इसी प्रकार समझनी चाहिए । विशेषता यह है कि तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न नहीं होते, मनुष्यों में भी पर्याप्तक संख्यातवर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं।
विवेचन - नैरयिक स्वभव से अर्थात् नरक से निकल कर (मरण प्राप्त कर ) संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले गर्भज तिर्यंच पंत्रेन्द्रियों और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं परन्तु सातवीं नरक पृथ्वी के नैरयिक संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियों में ही उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते हैं।
असुरकुमार आदि भवनपति देव, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, सौधर्म और ईशान देवलोक के देव बादर पर्याप्त पृथ्वी, पानी, वनस्पति, गर्भज संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यंच पंचेन्द्रियों और मनुष्यों में उत्पन्न हो सकते हैं।
पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय जीव तिर्यंच गति और मनुष्य गति में उत्पन्न होते हैं तथा तेजस्कायिक और वायुकायिक तिर्यंच गति में उत्पन्न होते हैं । तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति और देवगति में उत्पन्न होते हैं किन्तु वैमानिक देवों में सहस्रार कल्प पर्यन्त ही उत्पन्न होते हैं। मनुष्य चारों गतियों के सभी स्थानों में उत्पन होते हैं । सनत्कुमार से लेकर सहस्रार तक के देव संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय और
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