Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
४९ बोल संख्यात गुणा के आते हैं तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय के अपर्याप्त तक के जीव का बंध काल अन्तर्मुहूर्त जितना ही है। संज्ञी अपर्याप्त की स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। __ एक मुहूर्त (४८ मिनिट) में १६७७७२१६ आवलिकाएं होती है। जिसका २४ वाँ छेदनक एक आवलिका प्रमाण आता है। छेदनक में आधे आधे होते हैं। संख्यात गुणा में कम से कम दुगुने दुगुने लेवे तो भी उपर्युक्त अल्प बहुत्व में ५० बार संख्यातगुणा होने से आवलिका के भी अनेकों बार (२५ बार) छेदनक करे इतना छोटा आवलिका के संख्यातवें भाग प्रमाण - 'सूक्ष्म एकेन्द्रिय के पंचेन्द्रिय जाति का उत्कृष्ट बन्ध काल' होता है। अतः आयु बंध का काल - 'आवलिका के (बहुत छोटे) संख्यातवें भाग प्रमाण' होता है। ऐसा इस अल्प बहुत्व से स्पष्ट हो रहा है। इस प्रकार मानने में कोई आगमिक बाधा ध्यान में नहीं आती है।
॥आठवाँ द्वार समाप्त॥ ॥ प्रज्ञापना सूत्र का छठा व्युत्क्रांति पद समाप्त॥
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