Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
छठा उद्वर्त्तना द्वार
रइयाणं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जंति ? किं णेरइएसु उववज्जंति, तिरिक्ख जोणिएसु उववज्जंति, मणुस्सेसु उववज्जंति, देवेसु उववज्जंति ? गोयमा! णो णेरइएसु उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, मणुस्सेसु उववज्जंति, णो देवेसु उववज्जंति ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक जीव अनन्तर उद्वर्त्तन करके ( निकल कर ) कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं अथवा तिर्यंच योनिकों में उत्पन्न होते हैं ? मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं या देवों में उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जीव अन्तर उद्वर्त्तन करके नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते किन्तु तिर्यंच योनिकों में उत्पन्न होते हैं या मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं।
जइतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति किं एगिंदिएसु उववज्जंति जाव पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएसु उववज्जंति ?
गोयमा! णो एगिंदिएसु उववज्जंति जाव णो चउरिदिएसु उववज्जंति, एवं जेहिंतो उववाओ भणिओ तेसु उववट्टणा वि भाणियव्वा, णवरं सम्मुच्छिमेसु ण उववज्जंति । एवं सव्वपुढवीसु भाणियव्वं, णवरं अहेसत्तमाओ मणुस्सेसु ण उववज्जंति ॥ ३२० ॥
भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! यदि नैरयिक जीव तिर्यंच योनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं अथवा यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे न तो एकेन्द्रियों में और न ही बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होते हैं किन्तु पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं।
इस प्रकार जिन-जिन से उपपात कहा गया है, उन उन में ही उद्वर्त्तना भी कहनी चाहिए । विशेषता यह है कि वे सम्मूच्छिमों में उत्पन्न नहीं होते हैं।
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इसी प्रकार समुच्चय नारकी की तरह समस्त पृथ्वियों में उद्वर्त्तना का कथन करना चाहिए। विशेषता यह है कि सातवीं नरक पृथ्वी से निकल कर मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते।
असुरकुमारा णं भंते! अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जंति ? किं रइएस उववजंति तिरिक्ख जोणिएसु उववज्जंति, मणुस्सेसु उववज्जंति, देवेसु उववज्जंति ?
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