Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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छठा व्युत्क्रांति पद - उद्वत्तना द्वार
२२५
गोयमा! णो णेरइएसु उववजंति, तिरिक्खजोणिएसु उववजंति, मणुस्सेसु उववजंति, णो देवेस उववति । .. भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! असुरकुमार जाति के देव अनन्तर उद्वर्तना करके कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? दियेच योनिकों में, मनुष्यों में, देवों में उत्पन्न होते हैं? . उत्तर - हे गौतम! वे नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं किन्तु देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं।
जइ तिरिक्ख जोणिएसु उववजंति, किं एगिदिएसु उववजंति जाव पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएसु उववजंति? |
गोयमा! एगिदिय तिरिक्ख जोणिएसु उववजंति, णो बेइंदिएसु उववजंति जाव णो चउरिदिएसु उववजंति, पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएसु उववजंति। ____भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि असुरकुमार जाति के देव तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या वे एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, यावत् पंचेन्द्रियों तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं ? . उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु बेइन्द्रिय में, तेइन्द्रिय में और
चउरिन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते किन्तु पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं। - जइ एगिदिएसु उववजंति किं पुढवीकाइय एगिदिएसु उववजंति जाव वणस्सइ काइय एगिदिएसु उववजंति?
गोयमा! पुढवीकाइय एगिदिएसु वि उववजंति, आउकाइय एगिदिएसु वि उववजंति, णो तेउकाइएसु उववजंति, णो वाउकाइएसु उववजंति, वणस्सइ काइएसु उववजंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि असुरकुमार जाति के देव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो क्या पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं यावत् वनस्पति कायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, अप्कायिक एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं, किन्तु न तो तेजस्कायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं और न वायुकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, परन्तु वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं। .
- जइ पुढवीकाइएसु उववज्जति किं सुहुमपुढवीकाइएसु उववजंति, बायर पुढवीकाइएसु उववजंति?
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