Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! तीनों से ही आकर उत्पन्न होते हैं।
इसी प्रकार प्राणत, आरण और अच्युत कल्प के देवों के उपपात के विषय में भी कह देना चाहिये। इसी प्रकार नवग्रैवेयक देवों के उपपात के विषय में भी समझना चाहिये। विशेषता यह है कि असंयतों और संयतासंयतों से इनकी उत्पत्ति का निषेध करना चाहिये ।
जिस प्रकार ग्रैवेयक देवां का उपपात कहा है उसी प्रकार पांच अनुत्तर विमानों के देवों का भी उपपात समझना चाहिये। विशेषता यह है कि अनुत्तरौपपातिक देवों में संयत ही उत्पन्न होते हैं।
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जड़ संजयसम्मद्दिट्टि पज्जत्तग संखिज्ज वासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववज्जंति किं पमत्त संजय सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, अपमत्त संजय सम्मद्दिद्विपज्जत्तएहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! अपमत्त संजय पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, णो पमत्त संजय पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति ।
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भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! यदि संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु बाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या प्रमत्त संगत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! अप्रमत्त संयतों से आकर उत्पन्न होते हैं किन्तु प्रमत्त संयतों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं।
विवेचन - छठे गुणस्थानवर्ती साधुओं को प्रमत्त संयत कहते हैं और सातवें गुणस्थानवर्ती एवं आगे के सब गुणस्थानों में रहने वाले साधुओं को अप्रमत्त संयत कहते हैं ।
जइ अपमत्त संजएहिंतो उववज्जंति किं इड्डिपत्त अपमत्त संजएहिंतो उववज्जंति, अणिड्डिपत्त अपमत्त संजएहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! दोहिंतो वि उववज्जंति ॥ ५ दारं ॥ ३१९ ॥
कठिन शब्दार्थ - इड्डिपत्त - ऋद्धि प्रात, अणिडिपत्त - अमृद्धि प्राप्त (ऋद्धि से रहित ) ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अनुत्तरौपपातिक देव अप्रमत्त संयतों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या ऋद्धि प्राप्त अप्रमत्त संयतों से उत्पन्न होते हैं या अमृद्धि प्राप्त अप्रमत्त संयतों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! ऋद्धि प्राप्त अप्रमत्त संयतों एवं अनृद्धि प्राप्त अप्रमत्त संयतों दोनों से ही आकर उत्पन्न होते हैं ।
विवेचन - आमर्ष औषधि आदि अनेक प्रकार की लब्धियों का वर्णन आगमों में भिन्न-भिन्न
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