Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वाणव्यंतर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? अर्थात् वाणव्यन्तर देवों में किस किस गति के जीव आकर उत्पन्न होते हैं? क्या नरक गति, तिर्यंचगति, मनुष्य गति, देवगति से आकर उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! जिन-जिन से असुरकुमार देवों का उपपात कहा है उन-उन से वाणव्यंतर देवों का भी उपपात कह देना चाहिये। अर्थात् नरक गति से और देव गति से आकर जीव वाणव्यन्तर देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु तिर्यंच गति और मनुष्य गति से आकर जीव वाणव्यन्तर देवों में उत्पन्न होते हैं।
जोइसिया देवा णं भंते! कओहिंतो उववजति किं णेरइएहिंतो उववजंति, तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति, मणुस्सेहिंतो उववजंति, देवेहिंतो उववजति?
गोयमा! एवं चेव, णवरं सम्मुच्छिम असंखिजवासाउय खहयर पंचिंदिय तिरिक्ख . जोणियवजेहिंतो अंतरदीवग मणुस्सवज्जेहिंतो उववजावेयव्वा॥३१८॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! ज्योतिषी देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति, देव गति से आकर उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! इसी प्रकार समझना चाहिये। विशेषता यह है कि ज्योतिषी देवों का उपपात सम्मूछिम, असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों को तथा अन्तरद्वीपज मनुष्यों को छोड़ कर कहना चाहिये। अर्थात् इनसे निकल कर कोई जीव सीधा ज्योतिषी देव नहीं बनता। क्योंकि ज्योतिषी देवों में पन्द्रह कर्म भूमिज तीस अकर्म भूमिज और पांच संज्ञी तिर्यंच के पर्याप्त ये पचास भेद के जीव ही आकर उत्पन्न होते हैं।
वेमाणिया णं भंते! कओहिंतो उववजंति किं णेरइएहितो उववजंति, तिरिक्ख जोणिएहितो उववजंति, मणुस्सेहिंतो उववजंति, देवेहितो उववजंति?
गोयमा! णो णेरइएहिंतो उववजंति, पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति, मणुस्सेहितो उववजंति, णो देवेहिंतो उववजंति। एवं सोहम्मीसाणगदेवा वि भाणियव्वा। एवं सणंकुमारदेवा वि भाणियव्वा, णवरं असंखिजवासाउय अकम्मभूमग वजेहिंतो उववति। एवं जाव सहस्सार कप्पोवग वेमाणिय देवा भाणियव्वा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वैमानिक देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, देवगति से आकर उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - हे गौतम! वैमानिक देव नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते।
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