Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तर - हे गौतम! जैसे धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों के विषय में कहा है उसी प्रकार इनकी उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिये । विशेष यह है कि स्थलचर से उत्पत्ति का निषेध करना चाहिये । अर्थात् स्थलचर जीव छठी नरक में उत्पन्न नहीं होते हैं।
इस कथन (अभिलाप) के अनुसार यदि धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिक पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
हे गौतम! वे जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं किन्तु स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते और खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों से भी आकर उत्पन्न नहीं होते हैं।
विवेचन - जीवों के ५६३ भेदों में से पहली नरक पृथ्वी में पच्चीस की आगति है । पन्द्रह कर्म भूमिज मनुष्य, पांच सन्नी तिर्यंच और पांच असन्नी तिर्यंच = ( १५+५+५ = २५) । दूसरी शर्करा प्रभा नरक में २० की आगति है - पन्द्रह कर्म भूमि के मनुष्य और पांच सन्नी तिर्यंच । १५+५= २० । तीसरी वालुका प्रभा में १९ उन्नीस की आगति है यथा पन्द्रह कर्म भूमि के मनुष्य और चार सन्नी तिर्यंच ( भुज परिसर्प को छोड़कर) १५ + ४ = १९ । चौथी पंकप्रभा नरक में अठारह की आगति है पन्द्रह कर्म भूमि के मनुष्य और तीन सन्नी तिर्यंच (जलचर, स्थलचर और उरपरिसर्प) १५ + ३ = १८ | पांचवीं धूमप्रभा में १७ (सतरह) की आगति है यथा पन्द्रह कर्म भूमि के मनुष्य और जलचर और उरपरिसर्प १५+२= १७ । छठी तमः प्रभा में १६ ( सोलह ) की आगति है यथा पन्द्रह कर्म भूमि के मनुष्य और जलचर । १५+१=१६ और सातवीं तमः तमा प्रभा में इन्हीं सोलह की आगति है किन्तु वहाँ सोलह ही भेदों के स्त्री और स्त्री नपुंसक उत्पन्न नहीं होते हैं ।
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इनकी आगति को सरलता से याद रखने के लिए थोकड़ा वाले एक संकेत बना लेते हैं यथा भु, खे, थ, उ । इसका आशय यह है कि पहली दूसरी नरक में तो पच्चीस की आगति है किन्तु तीसरी में भुजपरिसर्प छूट जाता है। चौथी में खेचर, पांचवीं में स्थलचर, छठी में उरपरिसर्प छूट जाता है। इस प्रकार क्रमशः भु, खे, थ, उ छूटते जाते हैं।
नोट :- ऊपर के प्रश्न उत्तरों में तिर्यंच योनिकों से उत्पन्न होने का विधि निषेध कहा गया है। अब आगे मनुष्यों से आकर उत्पन्न होने का विधि निषेध कहा जाता है।
जइ मणुस्सेहिंतो उववज्जंति किं कम्मभूमिएहिंतो उववज्जंति, अकम्मभूमिएहिंतो उववज्जंति, अंतरदीवएहिंतो उववज्जंति ?
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