Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते हैं । जइ संखिज्जवासाउय कम्मभूमिग गब्भवक्कंतिय मणुस्सेहिंतो उववज्जंति किं पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्तएहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, णो अपज्जत्तएहिंतो उववज्जंति ॥ ३०७ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सामान्य नैरयिक यदि संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सामान्य नैरयिक पर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं किन्तु अपर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते हैं ।
रयणप्पभापुढवी णेरड्या णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! जहा ओहिया उववाइया तहा रयणप्पभा पुढवी णेरड्या वि उववाएयव्वा । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पहली रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक किंस गति से आकर उत्पन्न
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होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार ऊपर सातों नरकों का सामान्य रूप से सम्मिलित उत्पाद बतलाया गया है वैसा ज्यों का त्यों उत्पाद प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी का भी समझ लेना चाहिए।
विवेचन - ऊपर सातों नरकों को सम्मिलित रूप रख कर उत्पाद बतलाया गया है। अब एक-एक नरक का अलग से उत्पाद बताया जा रहा है।
सक्करप्पभापुढवी णेरड्या णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा! एए वि जहा ओहिया तहेवोववाएयव्वा, णवरं संमुच्छिमेर्हितो पडिसेहो काव्वो ।
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कठिन शब्दार्थ पडिसेहो - प्रतिषेध (निषेध), कायव्वो करना चाहिये ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों का उपपात भी औधिक (सामान्य) नैरयिकों के उपपात की तरह कहना चाहिये। विशेष यह है कि सम्मूच्छिमों से उत्पत्ति का निषेध करना चाहिये । अर्थात् सभी तिर्यंच और सभी प्रकार के मनुष्यों के सम्मूच्छिम जीव दूसरी नरक में उत्पन्न नहीं होते हैं ।
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