Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - 'णेरइय' शब्द में मूल का णिरय शब्द है। जिसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है - 'निर्गतं अविद्यमानं इष्ट फल देयं कर्म सात वेदनीयादि रूपं येभ्यः ते निरयाः। निर्गतं अयं शुभ फलं येभ्यः इति निरयाः। निरयेसु भवा: नैरयिकाः।' ___ अर्थात् - इष्ट फल देने वाला कर्म जहाँ पर नहीं है उसको 'णिरय' कहते हैं अर्थात् नरक स्थान। उन स्थानों में जो जीव उत्पन्न होते हैं उनको 'नैरयिक' कहते हैं।
"णिरय' शब्द के स्थान में 'णरय' अथवा 'णरग' शब्द का प्रयोग भी होता है। इस 'नरक' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है - 'नरान कायन्ति शब्दयन्ति योग्यताया अनतिक्रमेण आकारयन्ति जन्तून स्वस्वस्थाने इति नरकाः।' ___अर्थात् - यहाँ 'नर' शब्द का अर्थ सर्व प्राणी गण का है। सब प्राणियों में नर (मनुष्य) सर्व श्रेष्ठ है इसलिए यहाँ नर शब्द का प्रयोग किया है। तात्पर्य यह है कि जिन स्थानों में जाकर जीव रोते हैं चिल्लाते हैं अर्थात् परमाधार्मिक देव जिन पापी जीवों को रुदन (रुलाते) करवाते हैं अथवा परस्पर लड़कर एक दूसरे को रुदन करवाते हैं उन स्थानों को 'नरक' कहते हैं। स्थानाङ्ग सूत्र के चौथे स्थान में नरक में जाने के चार कारण बताये हैं यथा - १. महा आरम्भ करने वाला २. महान् परिग्रही - (धन धान्य आदि में अत्यन्त मूर्छा भाव रखने वाला) ३. मदिरा-मांस का सेवन करना वाला ४. पंचेन्द्रिय जीव की हत्या करने वाला। इन चार कारणों का सेवन करने वाले जीव मरकर नरक गति में जाते हैं। तात्पर्य यह है कि उपरोक्त महापापों का आचरण करने वाले जीवों को अपने किये हुए पाप कर्मों का फल भोगने के लिए जिन स्थानों में जाना पड़ता है। उन स्थानों को नरक कहते हैं।
नरक सात हैं उनके नाम इस प्रकार हैं - घम्मा, वंसा, शिला, अंजना, रिष्टा, मघा और माघवती। इनके गोत्र इस प्रकार हैं - रत्न प्रभा, शर्करा प्रभा, वालुका प्रभा, पङ्क प्रभा, धूम प्रभा, तमःप्रभा और महातमाः (तम :तमाप्रभा)। यहां पर सातों नरकों का सम्मिलित रूप से उत्पाद (जन्म लेना) बताया गया है अर्थात् सामान्य नरक गति का उत्पाद बतलाया गया है।
जइ तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं एगिंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति, बेइंदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, तेइंदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, चउरिदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति? ____ गोयमा! णो एगिंदिय तिरिक्खजोणिएहिं तो उववजंति, णो बेइंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति, णो तेइंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति, णो चरिदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक (सामान्य नैरयिक) यदि तिर्यंच योनिकों में से उत्पन्न होते
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