Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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छठा व्युत्क्रांति पद - चतुर्विंशति द्वार
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उद्वर्तना-मरण रहित कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक उद्वर्तना रहित कहे गये हैं।
एवं सिद्धवजा उब्वट्टणा वि भाणियव्वा जाव अणुत्तरोववाइयत्ति, णवरं जोइसिय वेमाणिएसु 'चयणं' ति अहिलावो कायव्वो॥२ दारं॥२९०॥ ___ भावार्थ - इसी प्रकार सिद्धों को छोड़ कर शेष जीवों की उद्वर्तना भी यावत् अनुत्तरौपपातिक देवों तक कह देना चाहिये। विशेषता यह है कि ज्योतिषी और वैमानिक देवों के कथन में उद्वर्तना के स्थान पर 'च्यवन' शब्द का प्रयोग करना चाहिये।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में नैरयिकों से लेकर अनुत्तरौपपातिक देवों तक का उद्वर्तना विरह काल का वर्णन किया गया है। जिस तरह उत्पन्न होने का विरह काल कहा, उसी तरह उद्वर्तन (निकलने) का विरह काल भी कह देना चाहिये। ज्योतिषी और वैमानिक देवों में उद्वर्तन न कह कर च्यवन कहना चाहिये। इसका कारण यह है कि च्यवन का अर्थ होता है-नीचे आना। ज्योतिषी और वैमानिक देव इस पृथ्वी से ऊपर हैं अतएव देव मर कर ऊपर से नीचे आते हैं, नीचे से ऊपर नहीं जाते हैं।
मूल पाठ में "सिद्धवजा" शब्द दिया है इसका अर्थ है सिद्धों में उद्वर्तन नहीं कहना चाहिए क्योंकि मनुष्य लोक से जीव सिद्धि गति में जाते तो हैं किन्तु वहाँ से लौट कर नहीं आते हैं। सिद्ध भगवन्तों में सिर्फ सादि अनन्त यह एक भङ्ग पाया जाता है। जब मनुष्य लोक से जीव सिद्धि गति में जाता है तो उसकी आदि (प्रारम्भ-शुरूआत) तो है किन्तु वहाँ से वापिस नहीं लौटते इसलिए अन्त नहीं है। अतएव सिद्ध भगवन्त सादि अनन्त कहे जाते हैं। सिद्धि गति में जीव बढते जाते हैं किन्तु घटते नहीं हैं।
· समुच्चय ज्योतिषी देव देवियों का उत्कृष्ट विरह २४ मुहूर्त का है। किसी भी एक ज्योतिषी विमान में ज्योतिषी देवों के उपपात च्यवन का विरह पल्योपम के संख्यातवें भाग का है। ज्योतिषी की स्थिति जघन्य पाव - पल्योपम, पल्योपम के आठवें - भाग की है एवं एक विमान में संख्यात ज्योतिषी देव ही हैं। एक ज्योतिषी विमान के देव की अपेक्षा सर्वार्थ सिद्ध विमान के देव संख्यात गुणे अधिक हैं। क्यों कि ज्योतिषी विमान एक योजन का भाग का उत्कृष्ट है जबकि सर्वार्थसिद्ध विमान एक लाख योजन का बड़ा है। ___नौवें-दसवें देवलोक का संख्यात मास, ग्यारहवें-बारहवें देवलोक का संख्यात वर्ष होते हुए भी
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