Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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दसवें देवलोक का संख्यात मास नौवें से बड़ा है तथा बारहवें देवलोक का संख्यात वर्ष ग्यारहवें देवलोक से बड़ा है। यहाँ संख्यात मास में कितना लेना ? निश्चित तो कह नहीं सकते परन्तु २ वर्ष (२४ मास) से कम तक समझ सकते हैं। बारहवें देवलोक के संख्यात वर्षों में २०० वर्षों से कम या - ज्यादा वर्ष भी हो सकते हैं। आठवें देवलोक में १०० अहोरात्र का विरह है, इसमें ३ मास झाझेरा तो हो ही गया - यह आगम शैली है। संख्यात वर्ष में कितना लेना निश्चित नहीं कहा जा सकता है।
प्रज्ञापना सूत्र
चार अनुत्तर विमान का उत्कृष्ट विरह असंख्यात काल का एवं नव ग्रैवेयक की तीन त्रिकों का. क्रमशः संख्यात सैकड़ों, संख्यात हजारों, संख्यात लाखों वर्षों का है । किन्तु अठाणु (९८) बोल में पांच अनुत्तर देवों की अपेक्षा नव ग्रैवेयक त्रिक के देव संख्यात गुणा अधिक ही बताये हैं। अतः नव ग्रैवेयक देवों का विरह काल संख्यात काल तो बहुत बड़ा संख्यात असंख्यात के समीप का समझना चाहिये अर्थात् इतनी बड़ी राशि होती है कि नव ग्रैवेयक के विरह काल से अनुत्तर विमान का असंख्यात काल रूप विरह काल से संख्यात गुणा ही होवे ।
शंका - फिर तो ये राशि शीर्ष प्रहेलिका से भी बहुत बड़ी हो जायेगी । फिर यहाँ संख्यात सौ, संख्यात हजार, संख्यात लाखों वर्षों ही क्यों कहा? स्पष्ट क्यों नहीं बताया है ?
समाधान - यहाँ 'संख्यात' से बहुत बड़ी राशि विवक्षित है। यहाँ संख्यात रूप राशि सौ, हजार, लाखों गुणी करने पर विवक्षित राशि आ जाती है। जो शीर्ष प्रहेलिका की राशि से भी बहुत बड़ी हो जाती है। नव ग्रैवेयक के देवों से अच्युत, आरण आदि संख्यात गुणे हैं । वह राशि बहुत बड़ी है। इनका विरह संख्यात मास आदि ही है । किन्तु " अनुत्तर देवों के उत्कृष्ट असंख्यात काल का विरह होते हुए भी वह कभी कभी ही पड़ता है तथा ग्रैवेयक देवों का बारबार पड़ता है।" यह बात हमारे ध्यान (समझ में नहीं आती कि कभी कभी ही क्यों पड़ता है ? अतः संख्यात सौ आदि में बहुत बड़ी राशि लेना ही गणित के नजदीक लगता है।
॥ दूसरा द्वार समाप्त ॥
तीसरा सान्तर द्वार
रइयाणं भंते! किं संतरं उववज्जंति, णिरंतरं उववज्जंति ?
गोयमा! संतरं वि * (पि) उववज्जंति, णिरंतरं वि * (पि) उववज्जंति ?
भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! नैरयिक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं ?
* पाठान्तर - 'पि', आगे के सूत्रों में भी इसी प्रकार समझना ।
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