Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पांचवां विशेष पद - जघन्य आदि अवगाहना वाले अनंत प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय १४७
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्य अवगाहना वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ?
उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य अवगाहना वाला असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थान पंतित है और वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शो की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
उत्कृष्ट अवगाहना वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए ।
मध्यम अवगाहना वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों का पर्याय-विषयक कथन भी इसी प्रकार समझना चाहिए। विशेष यह है कि वह स्वस्थान में चतुः स्थानपतित है।
विवेचन - मध्यम अवगाहना वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध के पर्यायों की प्ररूपणा इसके पर्यायों की प्ररूपणा जघन्य अवगाहना वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध के पर्यायों की प्ररूपणा के समान ही है। मध्यम अवगाहना वाले अर्थात् आकाश के दो से लेकर असंख्यात प्रदेशों में स्थित पुद्गलस्कन्ध के पर्यायों की प्ररूपणा इसी प्रकार है, किन्तु विशेष बात यह है कि स्वस्थान में चतुः स्थानपतित है।
जघन्य आदि अवगाहना वाले अनंत प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय
जहण्णोगाहणगाणं भंते! अनंतपएसियाणं पुग्गलाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अवगाहना वाले अनन्त प्रदेश स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं । सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णोगाहणगाणं अनंतपएसियाणं पुग्गलाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता ?
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गोयमा! जहण्णोगाहणए अणतपएसिए खंधे जहण्णोगाहणस्स अणतपएसियस्स खंधस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए छट्टाणवडिए, ओगाहणट्टयाए तुल्ले, ठिईए चउट्ठाणवडिए, वण्णाइ उवरिल्ल चउ फासेहिं छट्टाणवडिए । उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, णवरं ठिईए वि तुल्ले ।
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