Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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'१६८
प्रज्ञापना सूत्र
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गोयमा! अजहण्णमणुक्कोसपएसिए खंधे अजहण्णमणुक्कोसपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउढाणवडिए, वण्णाइ अढ फास पजवेहि य छट्ठाणवडिए॥२७६॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि मध्यम प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गये हैं ?
उत्तर. - हे गौतम! एक मध्यम प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे मध्यम प्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थान पतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
जघन्य अवगाहना वाले पुद्गल के पर्याय जहण्णोगाहणगाणं भंते! पुग्गलाणं केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पुद्गलों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्य अवगाहना वाले पुद्गलों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं।
से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णोगाहणगाणं पुग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णोगाहणगए पुग्गले जहण्णोगाहणगस्स पुग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए छट्ठाणवडिए, ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, ठिईए चउट्ठाणवडिए, वण्णाइ उवरिल्ल फासेहि य छट्ठाणवडिए। उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, णवरं ठिईए तुल्ले।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले पुद्गलों के पर्याय अनन्त कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य अवगाहना वाला पुद्गल दूसरे जघन्य अवगाहना वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है तथा वर्णादि और उपर्युक्त स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
उत्कृष्ट अवगाहना वाले पुद्गल-पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार कह देना चाहिए। विशेषता यह है कि स्थिति की अपेक्षां से तुल्य है।
विवेचन - उत्कृष्ट अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध की स्थिति तुल्य क्यों ? - उत्कृष्ट • अवगाहना वाला, अनन्त प्रदेशी स्कन्ध सर्वलोक व्यापी होता है वह या तो अचित्त महास्कन्ध होता है
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