Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१७०
प्रज्ञापना सूत्र
.................
फास पजवेहि य छट्ठाणवडिए। एवं उक्कोसठिइए वि।अजहण्णमणुक्कोसठिइए वि एवं चेव, णवरं ठिईए वि चउट्ठाणवडिए॥२७८॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले पुद्गलों के पर्याय अनन्त कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला पुद्गल, दूसरे जघन्य स्थिति वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है तथा वर्णादि और उपरोक्त स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले पुद्गलों के पर्यायों के विषय में भी कह देना चाहिए। .. ___ मध्यम स्थिति वाले पुद्गलों की पर्याय सम्बन्धी वक्तव्यता भी इसी प्रकार कह देना चाहिए। विशेषता यह है कि स्थिति की अपेक्षा से भी वह चतु:स्थानपतित है।
जघन्य गुण काले पुद्गलों के पर्याय जहण्णगुणकालगाणं भंते! पुग्गलाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्यगुण काले पुद्गलों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्यगुण काले पुद्गलों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णगुणकालगाणं पुग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णगुणकालए पुग्गले जहण्णगुणकालगस्स पुग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए छट्ठाणवडिए, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, कालवण्णपजवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण गंध रस फास पजवेहि य छट्ठाणवडिए तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'जहण्णगुणकालगाणं पुग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता' एवं उक्कोसगुणकालए वि। अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं जहा कालवण्णपजवाणं वत्तव्वया भणिया तहा सेसाण वि वण्ण गंध रस फासाणं वत्तव्वया भाणियव्वा जाव अजहण्णमणुक्कोस लुक्खे सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। से तं रूवि अजीव पजवा।से तं अजीव पजवा॥२७९॥
पण्णवणाए भगवईए पंचमं विसेसपयं (पजवपयं) समत्तं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org