Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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छठा व्युत्क्रांति पद - चतुर्विंशति द्वार
१७५
गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तिर्यंच गति कितने काल तक उद्वर्तना-मरण रहित कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! तिर्यंच गति जघन्य एक समय उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक उद्वर्तना रहित कई गई है।
मणुय गई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्य गति कितने काल तक उद्वर्तना रहित कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! मनुष्य गति जघन्य एक समय उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक उद्वर्तना रहित कही गई है।
देव गई णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता॥१ दारं॥१८१॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! देव गति कितने काल तक उद्वर्तना रहित कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! देव गति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक उद्वर्तना रहित कही गई है।
विवेचन - प्रश्न - उद्वर्तना किसे कहते हैं? उत्तर - जीव का एक गति से निकल कर दूसरी गति में जाना उद्वर्तना है।
प्रस्तुत सूत्र में चारों गतियों का उद्वर्तना रहित काल बताया गया है। चारों गति में उद्वर्तना रहित काल जघन्य एक समय उत्कृष्ट बारह मुहूर्त का होता है। सिद्धों की मृत्यु नहीं होती। क्योंकि वे शाश्वत होने से सादि अनन्त काल तक सिद्ध ही रहते हैं, अतः सिद्धि गति उद्वर्तना रहित कही गई है।
॥ प्रथम द्वार समाप्त॥
द्वितीय चतुर्विंशति द्वार रयणप्पभा पुढवि णेरइया णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात-उत्पत्ति रहित और उद्वर्तना रहित कहे गये हैं ?
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