Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पांचवां विशेष पद - जघन्य आदि स्थिति वाले अनंत प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय
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उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। ___इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी कह देना चाहिए।
मध्यम स्थिति वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार कह देना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है।
जघन्य आदि स्थिति वाले अनंत प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय जहण्णठिइयाणं अणंतपएसियाणं पुग्गलाणं केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्य स्थिति वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त कहे गए हैं।
से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णठिइयाणं अणंतपएसियाणं पुग्गलाणं अणंता पजवा पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णठिइए अपंतपएसिए जहण्णठिइयस्स अणंतपएसियस्स दव्वट्ठयाए . तुल्ले, पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए तुल्ले, वण्णाइ
अट्ठ फांसेहि य छट्ठाणवडिए। एवं उक्कोसठिइए वि। अजहण्णमणुक्कोस ठिइए वि एवं चेव, णवरं ठिईए चउट्ठाणवडिए॥ २७४॥ ____भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय अनन्त हैं ? ।
उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। - इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के पर्यायों के विषय में भी समझ लेना चाहिए।
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