Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
इसी प्रकार द्विप्रदेशावगाढ से दशप्रदेशावगाढ स्कन्धों तक के पर्यायों की वक्तव्यता समझ लेना चाहिए।
विवेचन - एकप्रदेशावगाढ़ परमाणु प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित हानिवृद्धिशील - द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य होने पर भी प्रदेशों की अपेक्षा से इसमें षट्स्थानपतित हीनाधिकता है, क्योंकि एक प्रदेशी परमाणु भी एक प्रदेश में रहता है और अनन्त प्रदेशी स्कन्ध भी एक ही प्रदेश में रह सकता है। किन्तु अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है। स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है तथा वर्णादि एवं. चतुःस्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित होता है। ___ एक प्रदेशावगाढ़ - द्विप्रदेशी से अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक प्रत्येक स्कन्ध में वर्णादि ५ बोल (१ वर्ण, १ गंध, १ रस, २ स्पर्श) ही होते हैं। (इस प्रकार का अनन्त प्रदेशी स्कन्ध 'द्रव्य से अनन्तप्रदेशी होता है परन्तु वर्णादि से तो 'भावपरमाणु' कहलाता है।) पांचों वर्णादि वाले स्कन्ध कम से कम पांच प्रदेशावगाढ़ होने ही चाहिये। वर्णादि २० बोल तो असंख्यात प्रदेशावगाढ़ होने पर ही हो सकते हैं। एक वर्ण वाले स्कन्धों में भी एक गुणता से अनन्तगुणता तक हो सकती है। परन्तु उन स्कन्धों की पृच्छा 'एक गुण काले वर्ण' में नहीं होगी। उस स्कन्ध में जो सबसे ज्यादा गुण होगा वह गुण ही उस पूरे स्कन्ध में गिना जायेगा। एक गुण कालापनामी उस अनन्त गुण काले में समावेश हो जाते हैं।
संख्यात प्रदेशावगाढ पुद्गल के पर्याय संखिज पएसोगाढाणं पुग्गलाणं भंते! केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! संख्यात प्रदेशावगाढ स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! संख्यात प्रदेशावगाढ़ स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ संखिज पएसोगाढाणं पुग्गलाणं अणंता पजवा पण्णत्ता?
गोयमा! संखिजपएसोगाढे पुग्गले संखिजपएसोगाढस्स पुग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए छट्ठाणवडिए, ओगाहणट्ठयाए दुट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, वण्णाइ उवरिल्ल चउफासेहि य छट्ठाणवडिए।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! ऐसा आप किस कारण से कहते है कि संख्यात प्रदेशावगाढ़ स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ?
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