Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
इसी तरह पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्शों का पर्याय विषयक कथन करना चाहिए।
विवेचन - एक जघन्यगुण काला, दूसरे जघन्य गुण काले से स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित होता है, क्योंकि बेइन्द्रिय की स्थिति संख्यात वर्षों की होती है, इसलिए वह चतुःस्थानपतित नहीं हो सकता।
जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते! बेइंदियाणं केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी बेइन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी बेइन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ - 'जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं बेइंदियाणं अणंता पजवा पण्णत्ता'?
गोयमा! जहण्णाभिणिबोहियणाणी बेइंदिए जहण्णाभिणिबोहियणाणिस्स बेइंदियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए तिट्ठाणवडिए, वण्णगंधरस-फासपजवेहिं छट्ठाणवडिए, आभिणिबोहियणाणपज्जवेहि तुल्ले, सुयणाणपजवेहिं छट्ठाणवडिए, अचक्खुदंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। एवं . उक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि।अजहण्णमणुक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि, एवं चेव, णवरं सट्टाणे छट्ठाणवडिए। एवं सुयणाणी वि, मइ अण्णाणी वि, सुयअण्णाणी वि, अचक्खुदंसणी वि, णवरं जत्थ णाणा तत्थ अण्णाणा णत्थि, जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा णत्थि, जत्थ दंसणं तत्थ णाणा वि, अण्णाणा वि। एवं तेइंदियाण वि। चउरिदियाण वि, एवं चेव, णवरं चक्खुदंसणं अब्भहियं ॥२६४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी बेइन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?
उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी बेइन्द्रिय, दूसरे जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी बेइन्द्रिय से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है, श्रुतज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है तथा अचक्षुदर्शन पर्यायों की अपेक्षा से भी षट्स्थानपतित है।
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