Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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है, तब जघन्य अवगाहना में भी अवधिज्ञान पाया जाता है। अतएव यहाँ तीन ज्ञानों का कथन किया गया है, किन्तु नरक से निकले हुए जीव का जघन्य अवगाहना में उत्पाद नहीं होता, क्योंकि उसका स्वभाव ही ऐसा है। इसलिए जघन्य अवगाहना में विभंग ज्ञान नहीं पाया जाता, इस कारण यहाँ मूलपाठ में दो अज्ञानों की ही प्ररूपणा की गई है। ___उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्य की स्थिति की अपेक्षा से हीनाधिक तुल्यता - उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों की अवगाहना तीन गव्यूति (कोस) की होती है और उनकी स्थिति होती है - जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम तीन पल्योपम की और उत्कृष्ट पूरे तीन पल्योपम की। तीन पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग, तीन पल्योपमों का असंख्यातवाँ ही भाग है। अतएव पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम तीन पल्योपम वाला मनुष्य तीन पल्योपम की स्थिति वाले मनुष्य से असंख्यात भाग हीन होता है और पूर्ण तीन पल्योपम वाला मनुष्य उससे असंख्यात भाग अधिक स्थिति वाला होता है। इनमें अन्य किसी प्रकार की हीनता या अधिकता संभव नहीं है। इस प्रकार के किन्हीं दो मनुष्यों में कदाचित् स्थिति की तुल्यता भी होती है।
उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों में दो ज्ञान और दो अज्ञान की प्ररूपणा - उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों में मति और श्रुत, ये दो ही ज्ञान अथवा मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान, ये दो ही अज्ञान और दो ही दर्शन पाएं जाते हैं। इसका कारण यह है कि उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्य असंख्यात वर्ष की आयु वाले ही होते हैं और असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य में न तो अवधिज्ञान ही हो सकता है और न ही विभंगज्ञान, क्योंकि उनका स्वभाव ही ऐसा है। __मध्यम अवगाहना वाले मनुष्य अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित - मध्यम अवगाहना , संख्यात वर्ष की आयु वाले की भी हो सकती है और असंख्यात वर्ष की आयु वाले की भी हो सकती है। असंख्यात वर्ष की आयु वाला मनुष्य भी एक या दो गव्यूत (गाऊ) की अवगाहना वाला होता है। अतः अवगाहना की अपेक्षा से इसे चतुःस्थानपतित कहा गया है।
चारों ज्ञानों की अपेक्षा से मध्यम-अवगाहना युक्त मनुष्य षट्स्थानपतित - मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यव, ये चारों ज्ञान द्रव्य आदि की अपेक्षा रखते हैं तथा क्षयोपशमजन्य हैं। क्षयोपशम में विचित्रता होती है, अतएव उनमें तरतमता होना स्वाभाविक है। इसी कारण चारों ज्ञानों की अपेक्षा से मध्यम अवगाहना युक्त मनुष्यों में षट्स्थानपतित हीनाधिकता बताई गई है।
केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से वे तुल्य हैं - चार घाती कर्मों के आवरणों के पूर्णतया क्षय से उत्पन्न होने वाले केवल ज्ञान में किसी प्रकार की तरतमता नहीं होती, इसलिए केवल ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से मध्यम अवगाहना युक्त मनुष्य तुल्य हैं।
जहण्णठिइयाणं भंते! मणुस्साणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता?
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