Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों में दो अज्ञान ही क्यों ? - सिद्धान्तानुसार सम्मूछिम मनुष्य ही जघन्य स्थिति के होते हैं और वे नियमतः मिथ्यादृष्टि होते हैं। इस कारण जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों में दो अज्ञान ही हो सकते हैं, ज्ञान नहीं। अत: वहाँ ज्ञानों का उल्लेख नहीं किया गया है।
उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्यों में दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन क्यों? - उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्यों की आयु तीन पल्योपम की होती है और वे युगलिक होते हैं । अतएव उनमें दो ज्ञान, दो अज्ञान
और दो दर्शन ही पाए जाते हैं। जो ज्ञान वाले होते हैं वे वैमानिक की आयु का बन्ध करते हैं, तब उनमें दो ज्ञान होते हैं। असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों में अवधिज्ञान, अवधिदर्शन या विभंगज्ञान का अभाव होता है। इस कारण इनमें दो ज्ञानों, दो अज्ञानों और दो दर्शनों का उल्लेख किया गया है, तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों का नहीं।
जहण्णगुणकालगाणं भंते! मणुस्साणं केवइया पजवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य गुण काले मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्य गुण काले मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णगुण कालगाणं मणुस्साणं अणंता पजवा पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णगुणकालए मणुस्से जहण्णगुणकालगस्स मणुसस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिइए चउट्ठाणवडिए, कालवण्ण पजवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण गंध रस फास पजवेहिं छट्ठाणवडिए, चउहिं णाणेहिं छट्ठाणवडिए, केवलणाण पज्जवेहिं तुल्ले, तिहिं अण्णाणेहिं, तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिए, केवलदसण, पज्जवेहिं तुल्ले।
एवं उक्कोसगुणकालए वि।
अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव। णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं पंच वण्णा, दो गंधा, पंच रसा, अट्ठ फासा भाणियव्वा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जघन्य गुण काले मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?
उत्तर - हे गौतम! एक जघन्य गुण काला मनुष्य दूसरे जघन्य गुण काले मनुष्य से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति
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