Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इसी प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों का पर्याय विषयक कथन करना चाहिए ।
प्रज्ञापना सूत्र
मध्यम अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की भी पर्यायप्ररूपणा इसी प्रकार करनी चाहिए। विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है ।
जिस प्रकार आभिनिबोधिक ज्ञानी तिर्यंच पंचेन्द्रिय की पर्याय - सम्बन्धी वक्तव्यता है, उसी प्रकार मति - अज्ञानी और श्रुत- अज्ञानी की है, जैसी अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की पर्यायों की प्ररूपणा है, वैसी ही विभंगज्ञानी की भी है। चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी की पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता
निबधिक ज्ञानी की तरह है । अवधिदर्शनी की पर्याय वक्तव्यता अवधिज्ञानी की तरह है। विशेष बात यह है कि जहाँ ज्ञान हैं, वहाँ अज्ञान नहीं है, जहाँ अज्ञान हैं, वहाँ ज्ञान नहीं हैं, जहाँ दर्शन हैं, वहाँ ज्ञान भी हो सकते हैं और अज्ञान भी हो सकते हैं, ऐसे कहना चाहिए ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट अवधिज्ञानी, विभंगज्ञानी तिर्यंच पंचेन्द्रियों की विभिन्न अपेक्षाओं से पर्यायों की प्ररूपणा की गई है।
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अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवधिज्ञानी तिर्यंच पंचेन्द्रिय स्वस्थान में षट्स्थानपतित - इसका मतलब है-वह स्वस्थान अर्थात् मध्यम अवधि ज्ञान में षट्स्थानपतित होता है। एक मध्यम अवधिज्ञानी दूसरे मध्यम अवधिज्ञानी तिर्यंच पंचेन्द्रिय से षट्स्थानपतित हीन और अधिक हो सकता है।
क्योंकि अवधि ज्ञान और विभंग ज्ञान असंख्यात वर्ष की आयु वाले को नहीं होता, अतः विभंगज्ञानी तिर्यंच पंचेन्द्रिय स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित नियम से होता ही है।
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जघन्य आदि अवगाहना वाले मनुष्यों के पर्याय
जहण्णोगाहणगाणं भंते! मणुस्साणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?
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गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उत्तर - हे गौतम! जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - 'जहण्णोगाहणगाणं मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?'
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गोयमा! जहण्णोगाहणए मणुस्से जहण्णोगाहणस्स मणुसस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, परसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए तुल्ले, ठिईए तिट्ठाणवडिए वण्ण गंध रस फास पज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं, दोहिं अण्णाणेहिं, तिहिं दंसणेहिं छट्टाणवडिए ।
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