Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
उत्कृष्ट स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का पर्याय विषयक कथन भी इसी प्रकार करना चाहिए। विशेष यह है कि इसमें दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शनों की प्ररूपणा करनी चाहिए। .
अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का पर्याय विषयक कथन भी इसी प्रकार पूर्ववत् करना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा से यह चतुःस्थानपतित हैं तथा इनमें तीन ज्ञान, तीन अज्ञान और तीन दर्शनों की प्ररूपणा करनी चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की विभिन्न अपेक्षाओं से पर्यायों की प्ररूपणा की गयी है। ... उत्कृष्ट स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच तीन पल्योपम की स्थिति वाले होते हैं। अतः उनमें दो ज्ञान दो अज्ञान होते हैं। जो ज्ञान वाले होते हैं, वे वैमानिक की आयु बांध लेते हैं, तब दो ज्ञान होते हैं। इस आशय से उसमें दो ज्ञान अथवा दो अज्ञान कहे गये हैं। ___ मध्यम स्थिति वाला तिर्यंच पंचेन्द्रिय संख्यात अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाला भी हो सकता है, क्योंकि एक समय कम तीन पल्योपम की आयु वाला भी मध्यम स्थितिक कहलाता है। अतः वह चतुःस्थानपतित होता है।
जहण्णगुणकालगाणं भंते! पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं. केवइया पजवा पण्णत्ता?
गोयमा! अणंता पजवा पण्णत्ता। .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जघन्य गुण काला पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के कितने पर्याय कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य गुण काला पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णगुणकालगाणं पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं अणंता पजवा पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णगुणकालए पंचिंदिय तिरिक्खजोणिए जहण्णगुणकालगस्स पंचिंदिय तिरिक्खजोणियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठिईए चउट्ठाणवडिए, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्णगंध-रस-फासपजवेहिं तिहिं णाणेहिं, तिहिं अण्णाणेहिं, तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिए।
एवं उक्कोसगुणकालए वि। · अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव, णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं पंच वण्णा, दो गंधा, पंच रसा, अट्ठ फासा।
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