Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पांचवां विशेष पद - जघन्य आदि अवगाहना वाले नैरयिकों के पर्याय
सेकेणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ - 'उक्कोसोगाहणगाणं णेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता' ?
गोयमा ! उक्कोसोगाहणए णेरइए उक्कोसोगाहणस्स णेरइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए तुल्ले । ठिईए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए । जइ ही असंखिज्ज भागहीणे वा संखिज्ज भागहीणे वा, अह अब्भहिए असंखिज्जइ भागअब्भहिए वा संखिज्ज भागअब्भहिए वा । वण्ण गंध रस फास पज्जवेहिं तिहिं णाहिं, तिहिं अण्णाणेहिं, तिहिं दंसणेहिं, छट्ठाणवडिए ।
प्रश्न - हे भगवन्! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय हैं ?
उत्तर - हे गौतम! एक उत्कृष्ट अवगाहना वाला नैरयिक, दूसरे उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से भी तुल्य है किन्तु स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यात भाग हीन है या संख्यात भाग हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यात भाग अधिक है, अथवा संख्यात भाग अधिक है । वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से तथा तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
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अजहण्णमणुक्को सोगाहणगाणं भंते! णेरइयाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?
गोया ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ।
कठिन शब्दार्थ - अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना
वाले।
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अजघन्य- अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गए हैं?
उत्तर - हे गौतम! अजघन्य - अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
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सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - ' अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं णेरइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता'?
गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए णेरइए अजहण्णमणुकोसोगाहणगस्स णेरइयस्स दव्वंट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय
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