Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
देवलोक के देवों के उपयोग में आती हैं। चालीस पल्योपम से एक समय अधिक की स्थिति से लेकर पचास पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियाँ ग्यारहवें देवलोक के देवों के उपयोग में आती हैं।
जो अपरिगृहीता देवियाँ दूसरे ईशान देवलोक में रहती हैं, उनमें से एक पल्योपम झाझे (अधिक) तक की स्थिति वाली देवियाँ दूसरे देवलोक के इन्द्रादि देवों के उपयोग में आती हैं। एक पल्योपम झाझेरी से एक समय अधिक की स्थिति से लेकर पन्द्रह पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियाँ चौथे देवलोक के देवों के उपयोग में आती हैं । पन्द्रह पल्योपम से एक समय अधिक की स्थिति से लेकर पच्चीस पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियाँ छठे देवलोक के देवों के उपयोग में आती हैं। पच्चीस पल्योपम से एक समय अधिक की स्थिति से लेकर पैतीस पल्योपम तक की स्थिति वाली. देवियाँ आठवें देवलोक के देवों के उपयोग में आती हैं। पैतीस पल्योपम से एक समय अधिक की स्थिति से लेकर पैतालीस पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियाँ दसवें देवलोक के देवों के उपयोग में । आती हैं। पैतालीस पल्योपम से एक समय अधिक की स्थिति से लेकर पचपन पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियाँ बारहवें देवलोक के देवों के उपयोग में आती हैं।
प्रश्न - हे भगवन् ! देवलोकों में किस प्रकार की परिचारणा ( विषय सेवन) होती है ?
उत्तर - हे गौतम! भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और पहले दूसरे देवलोक में मनुष्य की तरह शरीर (काया) की परिचारणा होती है। तीसरे चौथे देवलोक में स्पर्श की, पांचवें छठे देवलोक में रूप : की, सातवें आठवें देवलोक में शब्द की और नववें, दसवें, ग्यारहवें और बारहवें देवलोक में मन की परिचारणा होती है। इससे आगे नव ग्रैवेयक और पांच अनुत्तर विमान में किसी भी प्रकार की परिचारणा नहीं होती है ।
प्रश्न- देवियों की ऊपर जाने की शक्ति कहाँ तक की है ?
उत्तर- जिस प्रकार देवियों की उत्पत्ति दूसरे देवलोक तक होती है उसी प्रकार उनकी स्वयं की शक्ति दूसरे देवलोक से ऊपर जाने की नहीं है किन्तु देव की सहायता से अपरिगृहीता देवियाँ ऊपर जा सकती हैं। जिनमें काय परिचारणा है वे देवियाँ तो पहले दूसरे देवलोक में ही रहती हैं ऊपर नहीं जाती हैं किन्तु जिन में स्पर्श परिचारणा है वे पहले देवलोक की अपरिगृहीता देवियाँ तीसरे देवलोक में, जिनमें रूप परिचारणा है वे पांचवें देवलोक में और जिनमें शब्द परिचारणा है वे सातवें देवलोक में देव की सहायता से जाती हैं। इसी प्रकार दूसरे देवलोक की स्पर्श परिचारणा वाली देवियाँ देव की सहायता से चौथे देवलोक में, रूप परिचारणा वाली छट्ठे देवलोक में शब्द परिचारणा वाली आठवें देवलोक में जाती हैं जिन देवियों में मन परिचारणा हैं वे अपने स्थान पर ही रहती हैं ऊपर नहीं जाती हैं किन्तु नववें और ग्यारहवें देवलोक के देव प्रथम देवलोक की अपरिगृहीता देवियों के साथ मन से परिचारणा
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