Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयक के पर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तेईस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम चौबीस सागरोपम की कही गई है। - विवेचन - ग्रैवेयक देवों के नौ भेद हैं। उनके तीन विभाग हो जाते हैं। जिनको तीन त्रिक कहते हैं यथा - १. अधस्तनत्रिक २. मध्यम त्रिक ३. उपरितन त्रिक। अधस्तन त्रिक के तीन विभाग हैं इसी तरह मध्यम त्रिक और उपरितन त्रिक के भी तीन-तीन विभाग होते हैं। अधस्तन त्रिक के १११ विमान हैं, मध्यम त्रिक के १०७ विमान हैं और उपरितन त्रिक के १०० विमान हैं। इस प्रकार नव ग्रैवेयक के कुल ३१८ विमान होते हैं।
हेट्ठिम उवरिम गेविजगाणं देवाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं चउवीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं पणवीसं सागरोवमाई।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अधस्तन-उपरितन (सबसे नीचे की त्रिक के उपरिम अर्थात् सुजात नामक) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अधस्तन-उपरितन (सबसे नीचे की त्रिक के उपरिम अर्थात् सुजात नामक) ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य चौबीस सागरोपम की और उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम की कही गई है।
हेट्ठिम उवरिम गेविजग देवाणं अपजत्तगाणं पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
हेट्ठिम उवरिम गेविज्जग देवाणं पज्जत्तगाणं पुच्छा ?
गोयमा! जहणणेणं चउवीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणवीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौबीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पच्चीस सागरोपम की कही गई है।
मज्झिम हेट्ठिम गेविजगाणं देवाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं पणवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं छव्वीसं सागरोवमाइं।
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