Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पंचमं विसेसपयं
पांचवां विशेष (पर्याय) पद
उत्क्षेप (उत्थानिका) - इस पांचवें पद के दो नाम दिये गए हैं "विशेषपद" और " पर्यायपद"। यहाँ विशेषपद के दो अर्थ फलित होते हैं - १. जीवादि द्रव्यों के विशेष अर्थात् प्रकार तथा २. जीवादि द्रव्यों के विशेष अर्थात् पर्याय। इस प्रकार विशेष शब्द के दो अर्थ हुए 'प्रकार' और 'पर्याय' ।
प्रथम पद में जीव, अजीव इन दो द्रव्यों के प्रकार भेद-प्रभेद सहित बताए गए हैं। उसकी यहाँ भी संक्षेप में पुनरावृत्ति की गई है। वह इसलिए कि प्रस्तुत पद में इस बात को स्पष्ट करना है कि जीव और अजीव जो प्रकार हैं, उनमें से प्रत्येक के अनन्त पर्याय हैं । यदि प्रत्येक के अनन्त पर्याय हों तो सब जीवों के और सब अजीवों के अनन्त पर्याय हों तो इसमें कहना ही क्या ?
इस पद का नाम 'विशेष पद' रखा गया है। परन्तु इस पद के किसी भी सूत्र में और कहीं भी विशेष पद का प्रयोग नहीं किया गया है। किन्तु सारे पद में 'पर्याय' शब्द का प्रयोग किया गया है। जैन शास्त्रों में भी पर्याय शब्द को ही अधिक महत्त्व दिया गया है। इससे यह बात सूचित होती है कि, पर्याय या विशेष में कोई अन्तर नहीं हैं। जो नाना प्रकार के जीव या अजीव दिखाई देते हैं। वे सब द्रव्य के ही पर्याय हैं। फिर भले ही वे सामान्य के विशेष रूप ( प्रकार रूप ) हों या द्रव्य विशेष के पर्याय रूप हों। जीव के जो नारक आदि भेद बताये गए हैं। वे सभी प्रकार उस जीव द्रव्य के पर्याय हैं क्योंकि अनादिकाल से जीव अनेकबार उस-उस रूप में उत्पन्न हो चुका है। जैसे किसी एक जीव के वे पर्याय हैं, वैसे समस्त जीवों की योग्यता समान होने से उन सब ने नरक, तिर्यंच आदि रूप में जन्म लिया ही है। इस तरह जिसे पर्याय या भेद अथवा विशेष कहा जाता है। वह प्रत्येक जीव द्रव्य की अपेक्षा से पर्याय ही है। वह जीव की एक विशेष अवस्था ( पर्याय) या परिणाम ही है ।
इस पंचम पद में जीव व अजीव द्रव्यों के भेद व पर्यायों का निरूपण किया गया है। यद्यपि जीव और अजीव के भेदों के विषय में तो प्रथम पद में निरूपण था ही किन्तु इन प्रत्येक भेदों में जो अनन्त पर्याय हैं उनका प्रतिपादन करना इस पंचम पद की विशेषता है। प्रथम पद में भेद बताये गये हैं और तीसरे पद में उनकी संख्या बताई गई है किन्तु तीसरे पद में संख्या गत तारतम्य का निरूपण मुख्य होने से इस विशेष की कितनी संख्या है, यह बताना बाकी था। अतः प्रस्तुत पद में उन उन भेदों की तथा उनके पर्यायों की संख्या भी बतादी गई है। सभी द्रव्यों की पर्याय संख्या तो अनन्त हैं किन्तु भेदों की
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