Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! अच्युत कल्प के पर्याप्तक देवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम इक्कीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागरोपम की कही गई है।
विवेचन - प्रश्न - बारह देवलोक किस प्रकार स्थित हैं?
उत्तर - पहला और दूसरा देवलोक दोनों बराबरी में स्थित हैं और प्रत्येक अर्द्ध चन्द्राकार है। दोनों मिलकर पूर्ण चन्द्र के आकार बन जाते हैं। इन दोनों के नीचे तेरह प्रस्तट (प्रतर, पाथडा) हैं। पहले देवलोक के ऊपर तीसरा देवलोक है और दूसरे के ऊपर चौथा देवलोक है। ये प्रत्येक अर्द्ध चन्द्राकार हैं दोनों मिलकर पूर्ण चन्द्राकार बनते हैं। ये दोनों समान बराबरी में आये हुए हैं। इनके नीचे बारह प्रस्तट (प्रतर/पाथड़ा) आए हुए हैं। इनके ऊपर पाँचवां, छठा, सातवां और आठवाँ ये चार देवलोक एक घड़े के ऊपर दूसरे घड़े की तरह पूर्ण कलशाकार आए हुए हैं। पांचवें देवलोक के नीचे छह प्रस्तट हैं। छठे के नीचे पांच प्रस्तट हैं। सातवें के नीचे चार तथा आठवें के नीचे भी चार प्रस्तट हैं। इनके ऊपर नौवा और दसवां देवलोक समानाकार और दोनों मिलकर पूर्ण चन्द्राकार आए हुए हैं। इन दोनों के नीचे चार प्रस्तट हैं। नववे के ऊपर ग्यारहवाँ और दसवें के ऊपर बारहवां देवलोक आए हुए हैं। ये दोनों भी समानाकार और दोनों मिलकर पूर्ण चन्द्राकार रूप से आए हुए हैं। इनके नीचे चार प्रस्तट हैं। बारहवें देवलोक के ऊपर एक घड़े के ऊपर दूसरे घड़े की तरह नव ग्रैवेयक आए हुए हैं। इन नौ के नीचे नौ प्रस्तट हैं। ग्रैवेयकों के नाम इस प्रकार हैं - १. भद्र २. सुभद्र ३. सुजात ४. सुमनस ५. सुदर्शन ६. प्रियदर्शन ७. आमोह ८. सुप्रतिबद्ध ९. यशोधर।
इनके ऊपर पांच अनुत्तर विमान आए हुए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. विजय २. वैजयन्त ३. जयन्त ४. अपराजित ५. सर्वार्थसिद्ध। चार दिशाओं में चार अनुत्तर विमान हैं और बीच में सर्वार्थसिद्ध विमान आया हुआ है। इन पांचों के नीचे एक प्रस्तट हैं । इस प्रकार वैमानिक देवों के कुल ६२ प्रस्तट हैं।
हेट्ठिम हेट्ठिम गेविज्जगाणं देवाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं तेवीसं सागरोवमाइं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अधस्तन-अधस्तन (नीचे की त्रिक के नीचे का अर्थात् भद्र नामक) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अधस्तन-अधस्तन (नीचे की त्रिक के नीचे का अर्थात् भद्र नामक) ग्रैवेयक देवों की स्थिति जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट तेईस सागरोपम की कही गई है।
हेट्ठिम हेट्ठिम अपज्जत्त देवाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
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