Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
चौथा स्थिति पद - वैमानिक देवों की स्थिा ।
५५
विवेचन - प्रश्न - भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक इन चारों प्रकार के देवों में क्या देवियाँ पाई जाती हैं?
उत्तर - हाँ, चारों जाति के देवों में देवियाँ पाई जाती हैं। सिर्फ इतनी विशेषता है कि वैमानिक देवों में पहले और दूसरे देवलोक तक ही देवियों की उत्पत्ति होती है। इनसे आगे के देवलोकों में देवियों की उत्पत्ति नहीं होती है।
प्रश्न - देवियाँ कितने प्रकार की होती हैं? उत्तर - देवियाँ दो प्रकार की होती हैं। यथा - परिगृहीता और अपरिगृहीता। प्रश्न - परिगृहीता और अपरिगृहीता की व्याख्या क्या हैं ?
उत्तर - जिस विमान का जो देव मालिक (स्वामी) होता है, उस विमान में उत्पन्न होने वाली देवियाँ उस देव की परिगृहीता देवियाँ कहलाती हैं और वे उसी देव के उपयोग में आती हैं। अपने स्वतंत्र विमान में उत्पन्न होने वाली देवियाँ अपरिगृहीता देवियाँ कहलाती हैं। उनका स्वामी कोई देव नहीं होता, वे स्वतंत्र होती हैं। जैसे कि छप्पन दिशाकुमारियाँ के अपने अपने स्वतंत्र विमान हैं। उनके नाम जम्बूद्वीप पण्णत्ती सूत्र के पांचवें वक्षस्कार में जिन जन्माभिषेक अधिकार में दिए गए हैं। इसी तरह नदी, द्रह, कूट आदि की अधिष्ठात्री देवियों के विषय में भी जानना चाहिए। . प्रश्न - क्या परिगृहीता और अपरिगृहीता देवियों की स्थिति एक सरीखी होती है ?
उत्तर - भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिषी देवों में उनकी परिगृहीता और अपरिगृहीता देवियों की स्थिति प्रायः एक सरीखी होती है अथवा परिगृहीता देवियों की अपेक्षा अपरिगृहीता देवियों की स्थिति कुछ कम होती है। परन्तु वैमानिकों में फर्क है क्योंकि पहले सौधर्म देवलोक में परिगृहीता देवियों की स्थिति उत्कृष्ट सात पल्योपम की है और अपरिगृहीता देवियों की स्थिति पचास पल्योपम की है। इसी प्रकार दूसरे ईशान देवलोक में परिगृहीता देवियों की उत्कृष्ट नौ पल्योपम की स्थिति है जबकि अपरिगृहीता देवियों की उत्कृष्ट स्थिति पचपन पल्योपम की है।
प्रश्न - इन्द्रादिक देवों के उपभोग में कौनसी देवियाँ उपयोग में आती है ?
उत्तर - पहले देवलोक में जो अपरिगृहीता देवियाँ रहती है, उनमें से एक पल्योपम की स्थिति वाली देवियाँ पहले देवलोक के इन्द्रादि देवों के उपयोग में आती हैं। एक पल से एक समय अधिक की स्थिति से लेकर दस पल तक की स्थिति वाली देवियाँ तीसरे देवलोक के इन्द्रादिक देवों के उपयोग में आती हैं। दस पल्योपम से एक समय अधिक की स्थिति से लेकर बीस पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियाँ पांचवें देवलोक के उपयोग में आती हैं। बीस पल्योपम से एक समय अधिक की स्थिति लेकर तीस पल्योपम की स्थिति वाली देवियाँ सातवें देवलोक के देवों के काम आती हैं। तीस पल्योपम से एक समय अधिक की स्थिति से लेकर चालीस पल्योपम तक की स्थिति वाली देवियाँ नववें
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org