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२० मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
साधक न जीने की और न मरने की कामना करे । अपितु वह जीवन और मरण दोनों में ही समभाव रखे।
तदनुसार समस्त ममत्व भावों से मुक्त होकर महाराज श्री ने आत्म-भाव में रमन करते हुए आवाज दी-“कस्तूरा ! कस्तूरा ! जल्दी आओ मुझे संथारा करना है, अब अधिक समय तक यह शरीर रहने वाला नहीं है। श्री कस्तूरचन्द जी महाराज, पं० श्री मनोहर लाल जी महाराज आदि संत सेवा में पहुँचे। शरीर की गम्भीर हालत देखकर संथारा करवा दिया गया। चरित्रनायक श्री जी स्तवन-स्वाध्याय सुनाने में जुटे रहे। अति शीघ्र संथारे की सूचना सारे शरह में फैल गयी। दर्शनार्थियों का प्रवाह नदी पूर की तरह उमड़ पड़ा। नीम चौक तीर्थस्थल-सा रमणीय प्रतिभासित होने लगा । लगभग सवा चार बजे वह तेजस्वी दिव्यात्मा "नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं" का उच्चारण करती हुई स्वर्ग की ओर जाती रही। शव यात्रा समारोह का दृश्य बड़ा ही हृदय द्रावक था। जिसमें सभी सम्प्रदाय के हजारों नर-नारियों द्वारा उस दिवंगत दिव्यात्मा को श्रद्धांजलियाँ अर्पित की गईं। पाली चातुर्मास
पाली संघ के अत्याग्रह पर संघ हितार्थ एवं रत्नत्रय की अभिवृद्धि की दृष्टि से चरित्रनायक श्री जी ने सं० २००० का चातुर्मास पाली बिताना उचित समझा। पाली क्षेत्र मरुदेश का प्रतिष्ठा सम्पन्न क्षेत्र रहा है। जहाँ जैन समाज के धर्मनिष्ठ सैकड़ों घर हैं। जिन शासन की उन्नति में जिनका सराहनीय योगदान इतिहास प्रसिद्ध है। अपेक्षाकृत उदारता में भी अग्रगण्य रहा है। यही कारण है कि आज भी पाली श्री संघ प्रगतिशील संघों से पीछे नहीं, अपितु दो कदम आगे है।
अपने साथी मुनि श्री भेरूलाल जी महाराज, तपस्वी श्री मयाचन्द जी महाराज, श्री दीपचन्द जी महाराज के साथ पदार्पण किया। व्याख्यान के सुन्दर आयोजन होने लगे । जनता में प्रेरणा अंगड़ाइयाँ लेने लगी। तपस्वी श्री मयाचन्द जी महाराज ने ३३ दिन की तपाराधना पूरी की तो स्थानीय श्रावक-श्राविका वर्ग में भी यथाशक्ति धार्मिक अनुष्ठानों की साधना में पीछे नहीं रहे। एक दिन गुरुदेव श्री को भावी विघ्न सम्बन्धी कुछ आभास हुआ, तब स्थानीय संघ के प्रमुख वर्ग को सावधान करते हुए-चरित्रनायक ने कहा था-"सामूहिक रूप से आयम्बिल तप करने से आने वाली विघ्न-घटा विलीन होते देर नहीं लगती है। द्वारामती का अकाट्य उदाहरण सामने रखा।" बस, गुरुदेव श्री से इस प्रासंगिक प्रेरणा को पाकर स्थानीय नर-नारियों में ढाई हजार आयम्बिल तप हुए, दो सौ मूकप्राणियों को अभय दिलाया एवं अन्य काफी सुकृत के कार्य पूरे हुए।
। देखते-देखते विघ्न की प्रचण्ड घड़ियाँ निकट आईं। अतिवृष्टि के कारण विकराल रूप धारण कर नदी आ धमकी। सभी का जीवन मुट्ठी में था। पर महामनीषी की सद् कृपा से किसी की विशेष हानी नहीं हुई। सभी जान-माल से सुरक्षित रहे। विघ्न
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