Book Title: Munidwaya Abhinandan Granth
Author(s): Rameshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Ramesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP

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Page 395
________________ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ प्रगट करने वाले, संसार के भव्य जीवों को सब प्रकार से यथार्थ उपदेश देने वाले और जिनके उपदेश से जीवों की आत्मा बलवान होती है उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिए आइति समर्पित करता डॉक्टर राधाकृष्णन ने लिखा है-यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि इन तीन तीथंकरों का उल्लेख पाया जाता है। स्कंदपुराण के प्रभासखण्ड में वर्णन है-अपने जन्म के पिछले भाग में वामन ने तप किया के प्रभाव से शिव ने वामन को दर्शन दिये। वे शिव श्यामवर्ण, अचेल तथा पद्मासन से स्थित थे । वामन ने उनका नाम नेमिनाथ रखा। यह नेमिनाथ इस धोर कलिकाल में सब पापों का नाश करने वाले हैं। उनके दर्शन और स्पर्श से करोड़ों यज्ञों का फल प्राप्त होता है। प्रभासपुराण में भी अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है । महाभारत के अनुशासन पर्व, अध्याय १४६ में विष्णुसहस्रनाम में दो स्थानों पर 'शूरः शोरिर्जनेश्वरः' पद व्यवहृत हआ है। जैसे अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिजनेश्वरः ।। अनुकलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षण ||५०।। कालनेमि महावीरः शौरिः शूरजनेश्वरः। त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहाहरिः ।।२।। वाजस्य नू प्रसव आवमवेमात्र विश्वा भवनावि सर्वतः । स नेमिराजा परियाति विद्वान प्रजा पुष्टि वर्द्धमानोऽस्मै स्वाहा । -वाजसनेयि-माध्यंदिन शुक्लयजुर्वेद, अध्याय ६, मंत्र २५ सातवलेकर संस्करण (विक्रम संवत् १९८४) २ The Yajurveda mentions the names of three Tirthankaras-Rishabha, Ajitnath, and Arishthanemi. -Indian Philosophy, Vol. 1, p. 287. भवस्य पश्चिमे भागे वामनेन तपः कृतम् । तेनैवतपसाकृष्टः शिवः प्रत्यक्षतां गतः ।। पद्मासनः समासीनः श्याममूर्ति दिगम्बरः । नेमिनाथः शिवोऽथवं नाम चक्रेऽस्य वामन ॥ कलिकाले महाघोरे सर्वपापप्रणाशकः । दर्शनात स्पर्शानादेव कोटियज्ञफलप्रद ॥ -स्कंदपुराण, प्रभास खण्ड ४ कैलाशे विमले रम्ये वृषभोऽयं जिनेश्वरः । चकार स्वावतारं च सर्वज्ञः सर्वगः शिवः ।। रेवताद्री थिनो नेमिर्यगादिविमलाचले। ऋषीणां याश्रमादेव मूक्तिमार्गस्य कारणम् ।। -प्रभासपुराण ४६-५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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