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३७८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
जाने में कितना समय लगता है और नीचे लोक में आने में कितना समय ? यह प्रश्न भगवती सूत्र का ही है ।"
"इस समय हमारे ध्यान में नहीं है ।" प्रमुख तेरापंथी मुनिजी ने कहा ।
तब आचार्य प्रवर श्री ने लघुमुनि नन्दलालजी म० की तरफ संकेत किया कि - "मेरे प्रश्न का उत्तर देओ ।”
आचार्य प्रवर की ओर से आज्ञा मिलते ही श्री नन्दलालजी म० उत्तर देने के रूप में सविस्तार कहने लगे — “ऊर्ध्व लोक में जाने के लिए शकेन्द्र को जितना समय लगता है, उससे दुगुना उनके वज्र को और तीन गुना चमरेन्द्र को लगता है । इसी प्रकार अधोलोक में जाने के लिए चमरेन्द्र को जितना समय लगता है, उससे दुगुना शक्रेन्द्र को और तीन गुना शक्रेन्द्र के वज्र को लगता है।"
ठीक उत्तर श्रवण कर सभी मुनिवृन्द काफी प्रभाबित हुए। तेरापंथी मुनियों को कहना पड़ा कि - आपके ये लघुमुनि काफी प्रभावशाली निकलेंगे। अभी तो काफी छोटी उम्र है फिर भी विकास सराहनीय है ।
भविष्य में आपने जैनदर्शन के अतिरिक्त अन्य दर्शनों का भी अच्छा अध्ययन सम्पन्न किया । शास्त्रार्थं करने में आप काफी कुशल थे। कई बार उस युग में मन्दिरमार्गी आचायों के साथ आपको शास्त्रार्थ करना पड़ा था । निम्बाहेड़ा, नीमच, मंदसौर और जावरा शास्त्रार्थ के स्थल प्रसिद्ध हैं, जहाँ अनेक बार मूर्तिपूजक मुनियों के साथ खुलकर चर्चाएँ हुई हैं । गुरुदेव के शुभाशीर्वाद के प्रताप से सभी स्थानों पर आपने स्थानकवासी जैन समाज की गरिमा में चार चाँद लगाये | तब चतुर्विध श्री संघ ने आपको 'वादकोविद वादीमानमर्दक' पदवी से विभूषित कर गौरवानुभव किया था ।
वृद्धावस्था के कारण कुछ वर्षों से आप नीम चौक जैन स्थानक रतलाम स्थिरवास के रूप में विराज रहे थे । श्रावण कृष्णा ३ सं० १९६३ के मध्याह्न के समय शास्त्र पठन-पाठन कार्य पूरा हुआ । अनायास आपश्री का जी मचलाने लगा । अंतकाल निकट आया जानकर संथारा स्वीकार किया और 'नमोत्थुणं' की स्तुति करते-करते आप स्वर्गवासी हो गये । ७३ वर्ष पर्यंत संयमाराधना पालकर कुल ८१ वर्ष की आयु में परलोक पधारे ।
आचार्य प्रवर श्री खूबचन्दजी म०, पं० श्री हजारीमलजी म० ( जावरा वाले ); श्री लक्ष्मीचन्दजी म० एवं मेवाड़ भूषण श्री प्रतापमलजी म०, आदि-आदि गुरुदेव श्री नन्दलालजी म० की शिष्य-प्रशिष्य परम्परा में उल्लेखनीय हैं । जिनकी शिष्य-प्रशिष्य परम्परा इस प्रकार है
(१) उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी म० (२) मेवाड़भूषण श्री प्रतापमलजी म० (३) प्रवर्तक श्री हीरालालजी म० (४) त० वक्ता श्री लाभचन्दजी म० (५) तपस्वी श्री दीपचन्दजी म० (६) तपस्वी श्री वसन्त मुनिजी म० (७) शास्त्री श्री राजेन्द्र मुनिजी म० (८) सुलोवक श्री रमेश मुनिजी म (e) शास्त्री श्री सुरेश मुनिजी म० (१०) वि० श्री नरेन्द्र मुनिजी म० (११) तपस्वी श्री अभय मुनिजी म० (१२) कवि श्री विजय मुनिजी म०
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(१३) आत्मार्थी श्री मन्ना मुनिजी म० (१४) वि० श्री वसन्त मुनिजी म० (उज्जैन) (१५) तपस्वी श्री प्रकाश मुनिजी म० (१६) वि० श्री कांति मुनिजी म० (१७) श्री सुदर्शन मुनिजी म० (पंजाबी) (१८) श्री महेन्द्र मुनिजी म० (पंजाबी) (१६) श्री नवीन मुनिजी म० (२०) श्री अरुण मुनिजी म० (२१) वि० श्री भास्कर मुनिजी म० (२२) श्री सुरेश मुनिजी म० (२३) सेवाभावी श्री रतन मुनिजी म० (२४) श्री गौतम मुनिजी म०
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