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जैन ज्योतिष एवं ज्योतिषशास्त्री
। लक्ष्मीचन्द्र जैन गणित प्राध्यापक, गवर्नमेंट कॉलेज, खंडवा (म० प्र०)
जैन श्रति में ज्योतिष ज्ञान का प्रारम्भ कर्मभूमि के प्रारम्भ में सर्वप्रथम सूर्य एवं चन्द्रमा के उदय होने पर प्रथम कुलकर द्वारा मनुष्यों की उत्कंठा दूर करने हेतु होना प्रतीत होता है । किन्तु युग तथा कल्पकालों की अवधारणाएँ उक्त ज्ञान की परम्परा को सुदूर अनादि की ओर इंगित करती हैं । आज के सांख्यिकी सिद्धान्त पर आधारित ज्योतिष की खोजें युग सिद्धान्त को पुष्ट कर रही हैं। रोजर्स बिलियर्ड द्वारा प्रस्तुत फ्रेंच भाषा के शोध-निबन्ध में इसका विश्लेषण किया गया है ।'
ऐसा प्रतीत होता है कि वर्द्धमान महावीर युग में विद्यानुवाद पूर्व तथा परिकर्मों का संकलन अथवा निर्माण बड़े पैमाने पर हुआ होगा और इस कार्य में बेबिलन तथा सुमेरु को हजारों वर्ष प्राचीन अभिलेखबद्ध सामग्री एक स्रोत रूप में उपयोगी सिद्ध हुई होगी । आधुनिक पामीर एवं रूस के दक्षिणी कोरों के निवासी भारतीयों के सम्पर्क में जो इस ज्ञान का आदान-प्रदान करते रहे वह इतिहास की वस्तु नहीं वरन् मैत्री के अंचल का आगार बन कर रह गयी।२
गणित ज्योतिष का सम्पूर्ण रूप निखारने वाले भारतीय ग्रंथ आर्यभट्ट से पूर्व के अनुपलब्ध हैं । केवल जैन साहित्य के करणानुयोग सम्बन्धी परम्परा से चले आये ग्रंथों में यत्र-तत्र कुछ ऐसे तत्त्व बिखरे प्राप्त हो जाते हैं जिनसे ऐसे सूत्रों का बोध हो जाता है जो जैन ज्योतिष के अतुलनीय वैभव के परिचायक सिद्ध होते हैं । वे सर्वथा मौलिक प्रतीत होते हैं और उन कड़ियों को जोड़ते प्रतीत होते हैं जिनके टूट जाने से ज्योतिष इतिहास अंधकार में बता चला गया। इस सम कुछ शोध लेख प्रकाशित हो चुके हैं और शोध-प्रबन्ध निर्मित किये जा रहे हैं जिनके आधार पर भविष्य इतिहास के अनेक पहलू जैन आचार्यों के अभूतपूर्व अंशदानों को प्रकाश में लाने का उद्देश्य पूरा कर सकेंगे।
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Roger Billiard, L' Astronomie Indienne, Paris, 1971. देखियेNeugebauer, O., The Exact Science in Antiquity, Providence, 1957. देखिये-- (अ) Das, S. R., The Jaina Calendar, The Jaina Antiquary, Arrah, Vol. 3.
No. ii, Sept. 1973, pp. 31-36. (a) Agrawal, M. B., Part III, Jaioa Jyotisa, Thesis on "Ganita eyam
Jyotisa ke Vikasa men Jainacaryon Ka Yogadana." University of
Agra, August, 1972, pp. 314-341. (स) Jain L. C. Tiloyapannatti ka Ganita, Jivaraj Granthmala, Sholapur,
1958, 1-109.
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