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गुरु-परम्परा की गौरव गाथा
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पंडितवर्य श्री माकचन्दजी महाराज आपका निवास स्थान केरी है । जाति के आप ओसवाल थे। सं० १९३५ में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपके दो पुत्र देवीलालजी और भीमराजजी भी अपने पिताश्री के साथ दीक्षित हए। आपके जीवन सम्बन्धी विशेष जानकारी त्रिमुनि चरित्र में देखें।
___पंडितवर्य श्री देवीलालजी महाराज सं० १९३५ बड़ी सादड़ी में दीक्षित हुए। अपने पिताश्री माणकचन्दजी म० के शिष्य हुए। आपका अध्ययन सुचारु रूप से ठोस हुआ। प्रत्येक विषय को आपने मनन कर हृदयंगम किया था। जैनेतर ग्रन्थों का भी आपने अच्छा अवलोकन किया था। व्याख्यान शैली भी आपकी प्रभावपूर्ण थी। प्रश्नोत्तर में आप सदैव विजयी रहते । मालव-मेवाड़-मारवाड़-पंजाब आदि प्रान्तों में विहार कर जिन-शासन की खूब प्रभावना की। आपका विस्तृत जीवन-चरित्र देहली चांदनी चौक श्री संघ की ओर से प्रकाशित हो चुका है। आचार्य प्रवर श्री सहस्रमल जी म० आपके शिष्यरत्न थे। जिनकी परम्परा में स्व० श्री मिश्री मुनिजी म० 'सुधाकर' हुए। आपके शिष्यरत्न मधुर व्याख्यानी श्री ईश्वर मुनिजी म० एवं कवि श्री रंग मुनिजी म० इन दिनों जैन शासन की श्लाघनीय प्रभावना कर रहे हैं।
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