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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
कोटा सम्प्रदाय आगे चलकर कई शाखाओं में विभक्त हुआ। जिनमें से एक शाखा के अग्रगण्य मुनि एवं आचार्यों की शुभ नामावली निम्न है
श्री हरजी म० एवं जीवराजजी म० पूज्यश्री गुलाबचन्दजी म. (गोदाजी म०) पूज्यश्री फरसुरामजी म० पूज्यश्री लोकपालजी म. पूज्यश्री मयारामजी म. (महारामजी म०) पूज्यश्री दौलतरामजी म. पूज्यश्री लालचन्दजी म. पूज्यश्री हुक्मीचन्दजी म० पूज्यश्री शिवलालजी म. पूज्यश्री उदयसागरजी म. पूज्यश्री चौथमलजी म० पूज्यश्री लालजी म. पूज्यश्री मन्नालालजी म. पूज्यश्री खूबचन्दजी म० पूज्यश्री सहस्रमलजी म.
पूज्यश्री दौलतरामजी म. से पूर्व के पांचों आचार्यों के विषय में प्रामाणिक तथ्य प्राप्त नहीं है। परन्तु आचार्य श्री दौलतरामजी म. से लेकर पूज्यश्री सहस्रमलजी म. सा० तक के आचार्यों की जो हमें ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध है, वह क्रमशः दी जायगी। आचार्य श्री दौलतरामजी म० सा०
जन्म-वि० सं० १८०१ कालापीपल गांव में । दीक्षा- १८१४ फाल्गुन शुक्ला ५ । दोक्षागुरु-आ० श्री मयारामजी म० । स्वर्गवास-वि० सं०१८६० पौष शुक्ला ६ रविवार उणियारा ग्राम में ।
कोटा राज्य के अन्तर्गत "काला पीपल" गांव व वगैरवाल जाति में आपका जन्म हुआ था। शैशव काल धार्मिक संस्कारों में बीता। विक्रम सं० १८१४ फाल्गुन शुक्ला ५ की मंगल वेला में क्रियानिष्ठ श्रद्धय आचार्य श्री मयारामजी म. सा. के सान्निध्य में आपकी दीक्षा सम्पन्न हुई। प्रखर बुद्धि के कारण नव दीक्षित मुनि ने स्वल्प समय में ही रत्नत्रय की आशातीत अभिवृद्धि की । ज्ञान और क्रिया के सुन्दर संगम से जीवन उत्तरोत्तर उन्नतिशील होता रहा। फलस्वरूप संयमी-गुणों से प्रभावित होकर चतुर्विध संघ ने आप को आचार्य पद से शुभालंकृत किया।
मुख्य रूप से कोटा एवं पार्श्ववर्ती क्षेत्र आपकी विहार स्थली रही है । कारण कि-इन क्षेत्रों में धर्म-प्रचार की पूर्णतः कमी थी। भारी कठिनाईयों को सहन करके आपने उस कमी को दूर किया। खास कोटा में भी अत्यधिक परीषह सहन करने पड़े तथापि आप अपने प्रचार कार्य में संलग्न रहे । उच्चतम आचार-विचार के प्रभाव से काफी सफलता मिली । अतः सरावगी, माहेश्वरी अग्रवाल, पोरवाल, वगैरवाल एवं ओसवाल, इस प्रकार लगभग तीन सौ घरवालों ने आपके मुखारविन्द से गुरु आम्नाएँ स्वीकार की। इसी प्रकार बून्दी, बारा आदि क्षेत्र मी अत्यधिक प्रभावित हुए । फलस्वरूप आचार्य देव का व्यक्तित्व और चमक उठा। बस मुख्य विहारस्थली होने के कारण कोटा सम्प्रदाय के नाम से प्रख्यात हुए।
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