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भगवान अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता
श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री
भगवान अरिष्टनेमि बाईसवें तीर्थकर है। आधुनिक इतिहासकारों ने जो कि साम्प्रदायिक संकीर्णता से मुक्त एवं शुद्ध ऐतिहासिक दृष्टि से सम्पन्न हैं, उनको ऐतिहासिक पुरुषों की पंक्ति में स्थान दिया है। किन्तु साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से इतिहास को भी अन्यथा रूप देने वाले लोग इस तथ्य को स्वीकार नहीं करना चाहते। मगर जब वे कर्मयोगी श्रीकृष्ण को ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं तो अरिष्टनेमि भी उसी युग में हुए हैं और दोनों में अत्यन्त निकट के पारिवारिक सम्बन्ध थे, अर्थात् श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव और अरिष्टनेमि के पिता समुद्रविजय दोनों सहोदर भाई थे, अतः उन्हें ऐतिहासिक पुरुष मानने में संकोच नहीं होना चाहिए। वैदिक साहित्य के आलोक में :
ऋग्वेद में 'अरिष्टनेमि' शब्द चार बार प्रयुक्त हुआ है। 'स्वस्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः' (ऋग्वेद श१४1818) यहां पर अरिष्टनेमि शब्द भगवान् अरिष्टनेमि के लिए आया है। कितने ही विद्वानों की मान्यता है कि छान्दोग्योपनिषद् में भगवान अरिष्टनेमि का नाम 'घोर आंगिरस ऋषि' आया है। घोर आंगिरस ऋषि ने श्रीकृष्ण को आत्मयज्ञ की शिक्षा प्रदान की थी। उनकी दक्षिणा तपश्चर्या, दान, ऋजुभाव, अहिंसा, सत्यवचन रूप थी।२ धर्मानन्द कौशाम्बी का मानना है कि आंगिरस भगवान नेमिनाथ का ही नाम था।३ घोर शब्द भी जैन श्रमणों के आचार और तपस्या की उग्रता बताने के लिए आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर व्यवहृत हुआ है।
छान्दोग्योपनिषद् में देवकीपुत्र श्रीकृष्ण को घोर आंगिरस ऋषि उपदेश देते हुए कहते हैंअरे कृष्ण ! जब मानव का अन्त समय सन्निकट आये तब उसे तीन वाक्यों का स्मरण करना चाहिए
(१) स्वं अक्षतमसि-तू अविनश्वर है। (२) त्वं अच्युतमसि-तू एक रस में रहने वाला है। (३) त्वं प्राणसंशितमसि-तू प्राणियों का जीवनदाता है।
१ (क) ऋग्वेद १।१४।८६९
(ख) ऋग्वेद १।२४।१८०।१० (ग) ऋग्वेद ३१४१५३११७
(घ) ऋग्वेद १०।१२।१७८६१ २ अतः यत तपोदानमार्जवहिंसासत्यवचन मितिता अस्य दक्षिणा।
-छान्दोग्य उपनिषद् ३।१७।४ ३ भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृ० ५७ घोरतवे, घोरे, घोरगुणे, घोर तवस्सी, घोरबंभचेरवासी।
-भगवती १२१ ५ तबैतद् घोरं आंगिरस; कृष्णाय देवकीपुत्रायोक्त्वोवाचाऽपिपास एव स बभव, सोऽन्तवेलाया
मेतत्त्रयं प्रतिपद्येताक्षतमस्यच्युतमसि प्राणसं शितमसीति ।-छान्दोग्योपनिषद प्र० ३, खण्ड १८
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