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शुभकामना एवं श्रद्धाचन जैनागमतत्त्वविशारद प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज के
पुनीत चरण-कमल में
श्रद्धासुमन । श्री रंगमुनिजी महाराज
[तर्ज-लावणी छोटी कड़ी] जिनकी महिमा फैली चहुँ दिशि में भारी ।
___हिलमिल कर' सबही जय बोलो नरनारी ॥टेर।। ये जन्म मालवा मन्दसौर में पाया। श्री लक्ष्मीचन्दजी तात दूगड़ कहलाया।
____ माता थी जिनकी हगाम रत्न कुक्ष धारी ॥१॥ जन्मत ही हर्षे मात - पिता परिवारी। उन्नीसौ चौंसठ पोष शुक्ला शनिवारी ॥
शुभ नाम आपका हीरालालजी यश धारी ॥२॥ जब छाया जिगर वैराग्य संयम पद पाया। और पिता श्री भी वही मार्ग अपनाया।
उन्नीसो गुण्यासी रामपुरा श्रेयकारी ॥३॥ कर गहन शास्त्र अभ्यास ज्ञानी कहलाये। जैनागम तत्त्व विशारद का पद पाये।
- पूज्य खूबचन्दजी गुणवान गुरु उपकारी ॥४॥ नहीं तनिक कभी अभिमान आप में देखा। हैं सरल स्वभावी पुरुषार्थी मैं देखा।
रहे मस्त आप संयम पालन हर बारी ॥५।। जहाँ जहाँ भी विचरे किया बहुत उपकारी। मरुधर मालव, मेवाड़ व कन्या कुमारी॥
पंजाब देश गुजरात फिरे भय टारी ॥६॥ हैं श्रमण संघ के आप प्रवर्तक प्यारे । मनमोहन मूर्ति चमके तेज सितारे ॥
अभिनन्दन हिलमिल करती जनता सारी ॥७॥ है मेरे पर उपकार ज्ञान सिखलाया। आगम का जो भी ज्ञान आपसे पाया ।।
नहीं भूलूंगा उपकार स्मरण हर बारी ॥८॥ इस स्वर्ण जयन्ति पर करता अभिनन्दन । चरणों में मेरी स्वीकृत शत-शत वन्दन ॥
"रंगमुनि" श्रद्धा के सुमन करो स्वीकारी ॥६॥
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