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२२८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ जिसका फण वक्ष पर प्रदर्शित है। जटा मुकुट रूप में है । स्थानीय लोग इसे रावण बताते हैं परन्तु ये भीमशंकर हैं। मोड़ी के मन्दिर में लकुलीश की प्रतिमा है । ग्यारसपुर में कटरमल भैरव की प्रतिमा है जिनके हाथ में कटार है । मोड़ी में भी भैरव प्रतिमा है जिसके बायीं ओर उनका वाहन श्वान खड़ा है।
विक्रम संवत् १२१० की एक ब्रह्मा की प्रतिमा बाघ से प्राप्त होती है। मामोन में भी ब्रह्मा की प्रतिमा प्राप्त होती है। लदूना के तडाग के तट पर ब्रह्मा की प्रतिमा थी जिसे तस्कर चुरा ले गये। धौली तथा ढूंढरी में भी अन्य देवों के साथ ब्रह्मा भी अंकित हैं। उज्जैन के बिलोहीपुरा में एक पत्थर पर अन्य मूर्तियों के साथ ब्रह्माणी की प्रतिमा भी रखी है।
गन्धवास में पांच फीट ऊंची खड़े सूर्य की प्रतिमा है। झारडिया के देवालय मण्डप में सूर्यप्रतिमा अंकित है। १०वीं सदी की चन्द्रप्रतिमा का सिर भेलसा में प्राप्त है।
उज्जयिनी के विश्वविद्यालयीन पुरातत्व संग्रहालय में अनेक प्रतिमाएं शोभित हैं । खड्वांगधारी शिव, नटराज, खण्डित शिवप्रतिमा, गयासुर संहार करती शिवप्रतिमा, योगरत शिव, चतुर्भुजी भैरव, चतुर्मुखी शिवप्रतिमा जिसकी मुखमुद्रा सौम्य है, नन्दी पर आरूढ़ शिव-पार्वती, ताण्डव करते शिव एवं लास्य करती पार्वती की संयुक्त प्रतिमा, तापसी पार्वती, चामुण्डा (कालभैरव के निकट से प्राप्त) तथा चामुण्डा की एक अन्य प्रतिमा शहर से प्राप्त हुई है। सप्तमातृका, वैष्णवी, ब्रह्माणी, सप्तमातृका, गणपति, नृत्यगणपति, कार्तिकेय इत्यादि की प्रतिमाएँ यहाँ से प्राप्त होती हैं। क्षिप्रा नदी से चषक लिए अश्वारोही की सचमुच सुन्दर प्रतिमा प्राप्त हुई है। विष्णु, सूर्य, बुद्ध, महावीर तथा देवियों की कई प्रतिमाएँ यहां से उपलब्ध हुई हैं।
भेलसा, गंधरावल, मोड़ी, झारडिया, सुहानिया, झारडा तथा धमनार से विविध देवियों की प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। सुहानिया से अग्नि तथा वायु की प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं । मन्दिर के द्वार गंगा तथा यमुना के अंकन से युक्त हैं जैसे विदिशा की वराह प्रतिमा के साथ इनका अंकन हुआ है।
ई० सन् १०३४ में मनथल द्वारा निर्मित वाग्देवी की प्रतिमा पहले धारा की भोजशाला में थी और अब ब्रिटिश संग्रहालय में सुशोभित है। यह राजा भोज के शासनकाल में निर्मित हुई थी। यह चतुर्भुजी प्रतिमा अभंग मुद्रा में खड़ी है। मुकुट तथा कुण्डल, हार एवं करधनी पहने इस प्रतिमा की मनोहर काया कुशल कलाकार के हाथों दृढ़ समाधि में सरजी गयी। इसका अद्भुत सौन्दर्य तथा सन्तुलन का छन्द अद्वितीय है । शिवराम मूर्ति इसे भोजकालीन श्रेष्ठ प्रतिमा का उदाहरण मानते हैं। इसी आकृति की एक सरस्वती प्रतिमा बदनावर के वैद्यनाथ मन्दिर के प्रांगण में प्रदर्शित है।
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