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अनेकान्त दर्शन
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किसी द्रव्य या जीव के सम्बन्ध में जांच-पड़ताल करके निर्णय करने का जब प्रसंग आता है तो ध्यान में रखना चाहिए कि प्रारम्भ में हमें जो जैसा दीखता है, वैसा नहीं होता। हर एक के भिन्न-भिन्न पक्ष ध्यान में लेकर निर्णय करना आवश्यक है। इसलिए नय और निक्षेप अत्यन्त उपयुक्त हैं।
. इस प्रकार हमें स्पष्ट होगा कि प्रमाण, चतुष्टय, नय, निक्षेप, सप्तभंगी आदि शास्त्रीय पद्धतियों द्वारा अनन्त' धर्मात्मक वस्तु का स्वरूप समझने के लिए स्याद्वाद यह एक उपयोगी वाद है। सर्वोपरि जैन न्याय है । वह संशयवाद नहीं है। वह एक ही समय अस्तित्व नास्तित्व कहता हैं । लेकिन यह कथन स्व-चतुष्टय और पर-चतुष्टय की सापेक्ष दृष्टि से होता है । संशय को इसमें कतई स्थान नहीं है। वह एक सत्यवाद है। समन्वयवाद है।
स्यादवाद वस्तु के विविध पक्षों पर ध्यान देता है। सापेक्ष विचार करता है। हमें एकांगी विचार से बचाता है । वह समस्त दार्शनिक समस्याओं, उलझनों और भ्रमणाओं के निवारण का समाधान प्रस्तुत करता है।
स्याद्वाद हठाग्रही नहीं है । पर-मतसहिष्णुता सीखने का वह सर्वश्रेष्ठ मंत्र है। यह मंत्र 'ही' का नहीं 'भी' का प्रयोग करने को कहता है। उसका कहना है कि यह मत कहो कि 'यह ही सत्य है।' कहो कि 'वह सत्य होगा साथ-साथ यह भी सत्य है।' जो अपने मत के प्रति अथवा एकान्त के प्रति आग्रहशील है, दूसरे के सत्यांश को स्वीकार करने के लिए तत्पर नहीं वह तत्त्व रूपो नवनीत पा नहीं सकता। भ० महावीर ने सूत्रकृतांग में कहा है
सयं सयं पसंसंता परहंता परं वयं ।
जेउ तत्थ विउस्सन्ति संसारे विउस्सिया ॥ -जो अपने मन की प्रशंसा और दूसरे के मत की निन्दा करने में ही अपना पांडित्य दिखाते हैं, वे एकान्तवादी संसार चक्र में भटकते ही रहते हैं।
___यह उक्ति बिलकुल सत्य है । क्योंकि आग्रह राग है और जहाँ राग है वहाँ न आत्मशुद्धि सम्भव है न सम्पूर्ण सत्य का दर्शन ।
और सत्य कभी मेरा या तेरा नहीं होता । अगर सत्य को पाना है तो आग्रह या मतवादों से ऊपर उठना जरूरी है। यही स्याद्वाद का मुख्य सन्देश है।
निश्चित ही स्याद्वाद या अनेकान्त एक नयी विशाल प्रेममरी दृष्टि देने वाला एक सर्वोपरि मंत्र है। किसी ने ठीक ही कहा है-"विश्व शान्ति की स्थापना के लिए जैनों को अहिंसा की अपेक्षा स्याद्वाद सिद्धान्त का अत्यधिक प्रचार करना उचित है।" इस कथन में काफी वजन है। क्योंकि जहां सही-सही अनेकान्त दृष्टि आ जाती है, वहाँ अहिंसा अपने आप जीवन में उतर ही आती है।
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