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मालव - संस्कृति में धार्मिकता के स्वर २६३ डा० आर० डी० बनर्जी ने मालवों को पंजाब के निवासी बताया है । जो बाद में आकर अवंति जनपद में बस गये । प्रगट है कि मालव जाति अत्यन्त प्राचीन है और उसकी प्राचीनता के साथ ही मालव अथवा मालवा शब्द की प्राचीनता असंदिग्ध है । संस्कृति का स्वरूप एवं जैन संस्कृति
संस्कृति मानवता का प्रतीक है । इन्सानियत का आदि धर्म है । संस्कारिता की जननी है । राष्ट्रीयता का अविनश्वर स्वर है । उत्थान का आन्तरिक रूप है । अध्यात्मवाद का अमर प्रतीक है एवं विश्व मंत्री तथा सार्वभौमिकता का अभिन्न अंग है ।
संस्कृति प्रत्येक राष्ट्र की आध्यात्मिक वाणी है जिसके माध्यम से धार्मिकता के स्वर निरन्तर मुखरित होते रहते हैं। जिस देश की सांस्कृतिक चेतना धूमिल हो जाती है उसे नष्ट होने में कुछ भी विलम्ब नहीं लगता । अतएव संस्कृति सर्वोपरि है तथा इसका संरक्षण नितान्त आवश्यक है ।
इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि संस्कृति तथा सभ्यता एक-दूसरे के पर्यायवाची नहीं हैं । इनमें पर्याप्त भेद है । संस्कृति आत्मा है और सभ्यता शरीर । चिन्तन, विचारधारा, आध्यात्मिकता, उन्मेष आदि संस्कृति के परिचायक हैं। जबकि वेश-भूषा, भोजन व्यवस्था, रहन-सहन आदि सभ्यता के अन्तर्गत हैं । परिणामस्वरूप देश-काल आदि से प्रभावित सभ्यता शीघ्र परिवर्तित हो जाती है । लेकिन संस्कृति अपरिवर्तनशील कही गई है । इस कथन से हम यों भी कह सकते हैं कि - " सभ्यता की तुलना में संस्कृति अधिक स्थिर है तथा सहसा इसमें परिवर्तन संभाव्य नहीं है । फिर भी एक लम्बे आयाम के उपरान्त संस्कृति भी परिवर्तित हो जाती है ।"
संस्कृति शब्द 'सम्' उपसर्ग के साथ संस्कृत की ( डुकृञ ) धातु से बनता है । जिसका मूल अर्थ साफ या परिष्कृत करना है । आज की भाषा में यह अँग्रेजी शब्द “कलचर” का पर्यायवाची शब्द माना जाता है । संस्कृति शब्द का प्रयोग कम से कम दो अर्थों में होता है । एक व्यापक और दूसरे संकीर्ण अर्थ में । व्यापक अर्थ में उक्त शब्द का प्रयोग किया जाता है । व्यापक अर्थ के अनुसार संस्कृति समस्त सीखे हुए व्यवहार अथवा उस व्यवहार का नाम है, जो सामाजिक परम्परा से प्राप्त होता है । इस अर्थ में संस्कृति को सामाजिक प्रथा ( कस्टम) का पर्याय भी कहा जाता है । संकीर्ण अर्थ में संस्कृति एक वांछनीय वस्तु मानी जाती है और संस्कृत व्यक्ति एक श्लाघ्य व्यक्ति समझा जाता है । इस अर्थ में संस्कृति प्रायः उन गुणों का समुदाय समझी जाती है। जो व्यक्ति को परिष्कृत एवं समृद्ध बनाती है । नर-विज्ञान के अनुसार संस्कृति और सभ्यता शब्द पर्यायवाची है ।
हमारी समझ में संस्कृति और सभ्यता में अन्तर किया जाना चाहिए। सभ्यता का तात्पर्य उन आविष्कारों, उत्पादन के साधनों एवं सामाजिक-राजनैतिक साधनों से समझना चाहिए जिनके द्वारा मनुष्य की जीवन-यात्रा सरल एवं उसकी स्वतन्त्रता का मार्ग प्रशस्त होता है । इसके विपरीत संस्कृति का अर्थ चिन्तन- कलात्मक सर्जन की वे क्रियाएँ
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