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जैनदर्शन में भावना विषयक चिन्तन
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(घ) एषणा समिति भावना-निर्दोष आहार की गवेषणा करना ।
(न) आदान निक्षेपण समिति-भावना--विवेकपूर्वक वस्तु ग्रहण करना और रखना। (२) सत्य महावत की पाँच भावनाएं
) अनुचित्य समिति भावना--सत्य के विविध पक्षों पर चिन्तन करके बोलना। (ख) क्रोध निग्रह रूप क्षमा भावना-क्रोध-त्याग । (ग) लोभविजय रूप निर्लोभ भावना-लोभ-त्याग । (घ) भय मुक्ति रूप धैर्य युक्त अभय भावना-भय-त्याग ।
(न) हास्य मुक्ति वचन संयम भावना-हास्य-त्याग । (३) अचौर्य महावत की पांच भावनाएं
(क) विविक्तवास समिति भावना-निर्दोष स्थान में निवास का चिन्तन । (ख) अनुज्ञात संस्तारक ग्रहण रूप अवग्रह समिति भावना-निर्दोष ओढ़ना-बिछौना। (ग) शय्या-परिकर्म वर्जन रूप शय्या समिति भावना-शोभा-सजावट की वर्जना। (घ) अनुज्ञात भक्तादि भोजन लक्षण साधारण पिंडपात लाभ समिति भावना--सामग्री के
समान वितरण और संविभाग की भावना।
सामिक विनयकरण समिति भावना-सार्मिक के प्रति विनय व सदभाव । (४) ब्रह्मचर्य महावत की पांच भावनाएं
(क) असंसक्तवास बसति-ब्रह्मचर्य में बाधक कारणों, स्थानों और प्रसंगों से बचना । (ख) स्त्री कथाविरति-स्त्री के चिन्तन और कीर्तन से बचना । (ग) स्त्रीरूपदर्शनविरति-स्त्री के रूप सौन्दर्य के प्रति विरक्ति । (घ) पूर्वरत-पूर्वक्रीडितविरति-विकारजन्य पूर्व स्मृतियों का चिन्तन न करना ।
(न) प्रणीत आहारत्याग-आहार संयम, तामसिक भोजन का त्याग । (५) अपरिग्रह महाव्रत को पांच भावनाएँ(क) श्रोत्रेन्द्रियसंवर भावना-श्रोत्रेन्द्रिय के मनोज्ञ-अमनोज्ञ विषयों में राग-द्वष न
करना। (ख) चक्षरिन्द्रिय संवर भावना-चक्षरिन्द्रिय के मनोज्ञ-अमनोज्ञ विषयों में राग-द्वेष न
करना। 'ग) घ्राणेन्द्रिय संवर भावना-ध्राणेन्द्रिय के मनोज्ञ-अमनोज्ञ विषयों में राग-द्वेष न
करना। (घ) रसनेन्द्रिय संवर भावना-रसनेन्द्रिय के मनोज्ञ-अमनोज्ञ विषयों में राग-द्वेष न
करना। (न) स्पर्शनेन्द्रिय संवर भावना-स्पर्शनेन्द्रिय के मनोज्ञ-अमनोज्ञ विषयों में राग-द्वेष न
करना। जीवन में पांच महाव्रतों की रक्षा के लिए, उन्हें परिपुष्ट बनाने के लिए और जीवन को सुसंस्कारवान बनाने के लिये उक्त २५ चारित्र भावनाएं बताई गई हैं। इन भावनाओं के चिन्तन, मनन और जीवन में इनका प्रयोग करने से साधक को त्यागमय, तपोमय एवं अनासक्त जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है । परिणामस्वरूप वह संयम के पथ पर सफलतापूर्वक चल सकता है।
भावना भवनाशिनी शुभ भावना मानव को जन्म-मरण के चक्रों से मुक्ति दिलाने वाली है। शुभ भावनाओं के
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