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२७४ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
इसका अपर नाम 'रासक चूड़ामणि पुण्य प्रबन्ध' भी दिया है। इसमें गाथा, दूहा, षटपद, कुण्डलिया, रसावला वस्तु, इन्द्रवज्रा, अडिल्ल, सूर बोली, वर्णन बोली, यमक बोली, सोरठी आदि १६ तरह के छन्द प्रयुक्त हैं।
४. सम्वत् १५६५ के भादवा सुदि ७ गुरुवार को मण्डप दुर्ग में मलधार गच्छ के कवि हीरानन्द ने 'विद्या-विलास पवाड़ों' नामक चरित-काव्य बनाया। उसकी प्रति भण्डारकर ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट पूना के संग्रह में है ।
५. १७वीं शताब्दी के आगमगच्छीय कवि मंगल मणिक ने उज्जयिनी में रहते हुए दो सुन्दर लोक कथा काव्य बनाये । जिनमें से प्रथम विक्रम राजा और खापरा चोर रास की रचना सम्वत् १६३८ के माघ सुदी ७ के रविवार को पूर्ण हुई। दूसरी रचनाअम्बड़ कथानी चौपाई का प्रारम्भ तो सम्वत् १६३८ के जेठ सुदी पांचम गुरुवार को कर दिया गया था पर उसकी पूर्णाहुति सम्वत् १६३६ के कार्तिक सुदी १३ के दिन उज्जयिनी में हुई। इसकी प्रशस्ति में भट्टी खास निजाम और भानु भट्ट एवं मित्र लाडजी का उल्लेख किया है । मित्र लाडजी दरिया गुणी की प्रार्थना और मुनि लाडस के आदर के कारण ही इस रास की रचना की गई है।
उजेणीइ रही चोमासि, कथा रची ओ शास्त्र विभासि । विनोद बुधि वीर रस बात, पण्डित रसिक मांहि विख्यात ।।५७।। भरी खांन नदू ज जाम पसाय, विद्या भणी भानु मेर पाय । मित्र लाडजी सुणि वा कालि, वाची कथा विडालधी राजि । कहई वाचकय मंगल माणिक्य, अम्बड़ कथा रसई आधिक्य ।।
ते गुरु कृपा तणो आदेश, पूरा सात हुआ आदेश ॥५८।।
६. सम्वत् १६६२ के वैशाख सुदी १५ गुरुवार को उज्जैन में तपागच्छीय कवि प्रेमविजय ने १८५ दोहों का 'आत्म-शिक्षा' नामक उपयोगी ग्रन्थ बनवाया जो प्रकाशित भी हो चुका है।
संवत् सोल वासठ (१६६२), वैशाख पुन्यम जोय । वार गुरु सहि दिन भलो, अ संवत्सर होय ।। नगर उजेणीयां वली, आतम शिक्षा नाम । मन भाव धरी ने तिहां, करी सीधां वंछित काम ॥ अकशत अशी पांच अ, इहा अति अभिराम ।
भणे सुणे जे सांभणे ते, लहे शिव ठाम ॥१८५।। ७. सम्वत् १६७२ के मगसिर सुदी १२ को उज्जैन में कवि कृपासागर ने नेमिसागर उपाध्याय निर्वाण रास १० ढालों, १३५ पद्यों का बनाया। यह एक ऐतिहासिक काव्य है। इसके प्रथम पद्य में उज्जैन के अवन्ती पार्श्वनाथ का स्मरण किया गया है। रचना सम्वत् व स्थान का उल्लेख इस प्रकार है
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