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२२६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ कहा जाता है। यह मूर्ति पर्याप्त अलंकृत है। एक अन्य बाड़े में कई मूर्तियाँ पड़ी हैं। जिनमें काले चिकने पाषाण की शालभंजिका आकर्षक है। इस गांव का प्राचीन नाम मढ़ है जो मठ का अपभ्रंश प्रतीत होता है। यहाँ गाँव के दक्षिण में गोजाना गाँव तक विशाल भवनों की नींवें दिखाई देती हैं जो वहाँ मठ स्थिति की पुष्टि करती हैं। यहाँ के पाषाणों का उपयोग मन्दसौर दुर्ग के निर्माण में किया गया था। अवशिष्ट पत्थरों का ग्रामीण-जनों ने अपने घरों में उपयोग कर लिया। यहीं एक प्राचीन वापी भी है। यह स्थान प्राचीन काल में पर्याप्त प्रसिद्ध था और दशपुर का अभिज्ञान बन गया था। क्योंकि एक और दशपुर विदर्भ में दलिचपुर के निकट था जो ८१० ई० में दान में दे दिया गया था। यह आज दसुर कहलाता है। विदर्भ के दशपुर से इस मालवा के दशपुर की भिन्न प्रतीति के लिए इसके पास के प्रसिद्ध 'मठ' को संयुक्त कर इसे मठ दशपुर कहा जाने लगा जिससे एक निश्चित नगर का ही ज्ञान हो सके। इस संयुक्त नाम का ही अपभ्रंश आज का मन्दसौर शब्द है-मठदशपुर→मडदसउर, मँड़दसौर →मन्दसौर। सुप्रसिद्ध इतिहासविद् महाराज कुमार डॉ. रघुवीरसिंहजी का भी यही अभिमत है। इस सुप्रसिद्ध मठ के समीप गोजाना गाँव के पूर्ववर्ती कूप के तट पर अष्टभुजी विष्णु तथा पार्वती की एक मनोरम प्रतिमा है। विष्णु की प्रतिमा लगभग तीन फुट ऊँची एवं हल्के काले स्निग्ध पत्थर से निर्मित है जिसे सिन्दूर से पोत दिया गया है। यह परमारयुगीन प्रतीत होती है। मूर्ति के हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म, खांडा, धनुष इत्यादि हैं। निकटवर्ती चबूतरे पर वटमूल में शिव, पार्वती, नाग, यक्ष तथा शालभंजिकाओं की हृदयाकर्षक प्रतिमाएं हैं।
परमार युग में मूर्तिकला पुन: व्यापक रूप से लोकप्रिय हुई। इस काल में पर्याप्त मन्दिर एवं मूर्तियां सरजी गयीं। पहले जितनी बौद्ध प्रतिमाएं निर्मित होती थीं उससे अधिक अब जन प्रतिमाएँ निर्मित होने लगीं।
मेघदूत के देवगिरि (वर्तमान देवडंगरी) के निकट महगांव के उत्तर में एक प्राचीन देवालय में दशावतार की मनोरम प्रतिमाएँ भित्ति में खचित हैं। वराह. नृसिंह इत्यादि की प्रतिमाएँ अत्यन्त मनोहर बन पड़ी हैं। प्रधान प्रतिमा चतुर्भुज विष्णु की है जिसे महिलोचित परिधान पहनाकर ग्रामवासी देवी के रूप में पूजते हैं। ग्राम्यों ने विष्णु को उनका मोहिनी रूप दे दिया, अज्ञान में भी सचाई की रक्षा हो गयी। बदनावर में बैजनाथ मन्दिर के चत्वर पर वराह की मनोरम प्रतिमा है। ऐसी एक प्रतिमा सीतामऊ के निकट गाँव लदूना के तालाब के तट पर है।
भेलसा में चतुर्भूज विष्णु की प्रतिमा ८-९वीं सदी की है। सिर के पीछे प्रभामण्डल है, गले में वैजयन्तीमाला। उज्जैन से आठ किलोमीटर दूर कमेड़ (यह शब्द सम्भवत: कमठ का अपभ्रंश है) में १०वीं सदी की चतुर्भुज प्रतिमा शोभित है। माण्डू से प्राप्त एक विष्णु प्रतिमा उड़ते गरुड़ पर सवार है जिसके वामोरु पर लक्ष्मी आसीन
है। धमनार के धर्मनाथ मन्दिर के द्वार पर लक्ष्मीनारायण की प्रतिमाएँ हैं। धार से भी Jain Education International For Private & Personal Use Only
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