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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
उपसर्ग किये थे। उक्त उपसर्गों का इन योगिराज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो महारुद्र ने उनकी स्तुति की, अपनी संगिनी उमा सहित भक्ति में उल्लसित हो नृत्य किया और भगवान को 'महति' एवं 'महावीर' नाम दिये। केवलज्ञान प्राप्ति के उपरान्त भी भगवान का समवसरण उज्जयिनी में आया बताया जाता है। जिस दिन भगवान महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए उसी दिन चंडप्रद्योत का भी निधन हुआ और उसका पुत्र पालक उज्जयिनी के सिंहासन पर आसीन हुआ। जैन परम्परा में उज्जयिनी का महत्त्व उसी काल में इतना बढ़ गया था कि प्राचीन जैन ग्रन्थों में महावीर-निर्वाणोपरान्त की जो राज्य कालगणना प्राप्त होती है, वह मुख्यतया इसी नगर को केन्द्र मानकर दी गई है।
मगध के नन्द सम्राट महानंदिन ने, जो सर्वक्षत्रान्तक कहलाया, पालक के वंशजों का उच्छेद करके अवन्ति को मगध साम्राज्य में मिला लिया और उज्जयिनी को मगध साम्राज्य की उपराजधानी बनाया। चाणक्य एवं चन्द्रगुप्त मौर्य ने जब मगध से नन्दों की सत्ता को समाप्त कर दिया तो उन्होंने वृद्ध महापद्मनन्द को सुरक्षित अपने धन-जन सहित अन्यत्र चले जाने की अनुमति दे दी थी, और ऐसा लगता है कि उसने अपना अन्तिम समय उज्जयिनी में ही बिताया था। उसकी मृत्यु के पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य ने इस नगरी को पुनः साम्राज्य की उपराजधानी बना लिया। राज्य का परित्याग करके मुनिरूप में अपने आम्नायगुरु भद्रबाहु श्रुतकेवली का अनुगमन करते हुए श्रवणबेलगोल (कर्णाटक) जाते समय भी यह राजर्षि चन्द्रगुप्त इस नगर से होकर गया था। एक अनुश्रुति के अनुसार तो श्रुतकेवली ने द्वादशवर्षीय दुष्काल की भविष्य वाणी उज्जयिनी में ही की थी। उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी बिन्दुसार अमित्रघात के शासनकाल में राजकुमार अशोक उज्जयिनी का वायसराय (राज्यपाल) रहा था। वहाँ रहते हुए ही उसने विदिशा की एक श्रेष्ठि-कन्या से विवाह किया था उसी का पुत्रराजकुमार कुणाल था। अशोक के शासनकाल में कुणाल उज्जयिनी का राज्यपाल रहा, और अशोक की मृत्यु के उपरान्त जब कुणाल का पुत्र सम्प्रति मगध साम्राज्य के बहुभाग का उत्तराधिकारी हुआ तो उसने उज्जयिनी को ही अपनी राजधानी बनाया। सम्राट् सम्प्रति के गुरु आर्य सुहस्ति थे जिनकी प्रेरणा से उसने अनगिनत जिनमन्दिर बनवाये । अनेक धर्मोत्सव किये, तथा धर्म की प्रभावना, प्रचार एवं प्रसार के लिए नानाविध प्रयास किये, जिनके कारण उस धर्मप्राण नरेश की यशोगाथा इतिहास में अमर हो गई । उसका पुत्र शालिशुक्त भी धर्मात्मा एवं धर्म प्रभावक था।
सम्प्रति मौर्य के निधन के कुछ काल उपरान्त कलिंग चक्रवर्ती सम्राट् खारवेल ने अवन्ति देश पर अधिकार किया और अपने एक राजकुमार को यहाँ का राज्यपाल नियुक्त किया, जो लगता है कि खारवेल के निधन के उपरान्त स्वतंत्र हो गया। उसी का
१ उत्तरपुराण पर्व ७४, श्लो० ३३१-३३७ (गुणभद्र)।
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