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२१४ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ में ११५, सागर में ११७ तथा भोपाल में १२६ से० मी० वर्षा अंकित की जाती है। जुलाई से सितम्बर तक सबसे अधिक तथा पूरे वर्ष की ९०% वर्षा होती है। वर्षा के दिनों को छोड़कर वायुमण्डल सामान्य रूप से शुष्क एवं स्वच्छ रहता है। इसमें भी प्रात: की अपेक्षा सन्ध्या समय अधिक शुष्क होता है । ग्रीष्म काल में धूल की आंधियाँ तथा जाड़े के दिनों में कभी-कभी कुहरा पड़ता है। पंचमढ़ी में जुलाई में लगभग २१ दिन कुहरा पड़ता है।
लगभग सम्पूर्ण प्रदेश में काली मिट्टी पाई जाती है। इसमें चूने के कंकड़ तथा कैल्सियम, कार्बोनेट के टुकड़े मिले हुए पाये जाते हैं। ग्रीष्म में इसमें दरारें पड़ जाती हैं तथा वर्षाकाल में चिपचिपी हो जाती है। फास्फेट, नाइट्रोजन तथा वनस्पति अंशों की सामान्य रूप से कमी है। इस प्रदेश की मिट्टी को (१) गहरी काली (२) मध्यम काली (३) धुधली काली (४) लाल काली मिश्रित (५) लाल-पीली मिश्रित तथा जलोड़ आदि किस्मों में बाँटा जा सकता है।
इनके क्षेत्रों तथा सम्मिलित पदार्थों को निम्न तालिका में दिखाया गया है
मिट्टी का नाम
मिश्रित पदार्थ
उत्पन्न होने वाली
फसलें
क्षेत्र
१. गहरी काली बालू मिश्रित कपास
होशंगाबाद, सतपुड़ा
पठार आदि २. मध्यम काली चूने के कंकड़, कैल्सि- लगभग सभी भारतीय सागर, सीहोर, नीमच, यम, कार्बोनेट फसलें
रायसीन, मन्दसौर,
साजापुर आदि ३. धुधली काली १५% मृतिका चावल, कपास बेतूल, झाबुआ,
रतलाम, बांसवाड़ा ४. काली एवं चूना कंकड़ रहित, अधिकांश फसलें प० गुना, झालावाड़ लाल मिश्रित बालू मिश्रित, नाइट्रो- सिंचाई से उत्पन्न तथा शाजापुर
जन, फासफोरिक एसिड, चूना तथा जीव
पदार्थ रहित ५. जलोड़ मिट्टी
लगभग सभी फसलें नदियों की घाटियों
में प्राप्त
मालवा प्रदेश में मुख्य रूप ने रसवन्ता किस्म की वनस्पति पाई जाती है। इसके अतिरिक्त पतझड़ किस्म के वन भी दक्षिणी भाग में फैले हुए हैं। श्री ए० जी० चैम्पियन के अनुसार उत्तरी भाग में शुष्क पतझड़ वन पाया जाता है। इन वनों को स्थिति के अनुसार पहाड़ी वन, नदीय वन तथा पठारी वनों में बाँटा जा सकता है।
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