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मालव इतिहास : एक विहंगावलोकन
विद्यावारिधि डा० ज्योति प्रसाद जैन, लखनऊ
[हमारे अभिनन्दनीय गुरुदेव ज्योतिर्विद श्रद्धेय श्री कस्तूर चन्दजी महाराज एवं प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज की जन्मभूमि मालव प्रदेश रहा है। मालव, जैनधर्म-संस्कृति एवं इतिहास की क्रीड़ा-भूमि रही है। जैन संस्कृति के संरक्षण एवं सवर्धन में मालवभूमि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अभिनन्दनीय पुरुषों की अभिनन्दन वेला में जन्म-भूमि के गौरव को स्मृतिपथ में लाना भी अनिवार्य है। इस दृष्टि से इस खण्ड में प्रस्तुत है-जन्मभूमि म लव की धार्मिक एवं सांस्कृतिक गरिमा का विरल शब्द-चित्र ।
-सम्पादक
मध्य प्रदेश का जो भूभाग आज मालव या मालवभूमि नाम से जाना जाता है, वह वस्तुतः भारतवर्ष का नाभिस्थल है, और राजनैतिक एवं आर्थिक दृष्टियों से ही नहीं, सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस महादेश का प्रमुख एक केन्द्र रहता आया है। अति प्राचीनकाल में यह भूभाग अवन्तिदेश के नाम से विख्यात था और अवन्तीपुरी अपरनाम उज्जयिनी (उज्जैन) उसकी राजधानी थी। जैनपुराण एवं कथा साहित्य में तथा आगमिक ग्रन्थों में अवन्तीदेश और उज्जयिनी नगरी के अनेक उल्लेख एवं सुन्दर वर्णन प्राप्त होते हैं।
शुद्ध इतिहासकाल में, महावीरकालीन (छठी शती ईसा पूर्व के) भारत के सोलह "महाजनपदों" में अवन्ति एक प्रमुख एवं शक्तिशाली महाजनपद था और उज्जयिनी की गणना उस काल की दश मह राजधानियों एवं सप्त महापुरियों में थी। यह एक राजतंत्र था, और उसका एकछत्र शासक अवन्तिपति महासेन चण्डप्रद्योत था, जो उग्र प्रकृति का, युद्धप्रिय, शूरवीर, प्रतापी एवं शक्तिशाली स्वेच्छाचारी नरेश था। परन्तु भगवान महावीर के तथा स्वयं अपनी महारानी सती शिवादेवी एवं वत्स देश की राजमाता सती मृगावती के प्रभाव से अन्ततः सौम्य हो गया था और धर्म की ओर भी उन्मुख हुआ था। शिवादेवी और मृगावती सगी बहनें थीं और वैशाली के लिच्छवि गणाधिप महाराज चेटक की पुत्रियां थीं, और इस प्रकार महावीर जननी त्रिशला प्रियकारिणी की बहनें (अथवा भतीजियां) थीं। प्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता वत्सराज उदयन की लोक-कथा-प्रसिद्ध प्रेयसी थी। अपने तपस्याकाल में भी महावीर एकदा उज्जयिनी पधारे थे, और जब वह नगर के बाहर अतिमुक्तक श्मशान में प्रतिमायोग से ध्यानस्थ थे तो स्थाणुरुद्र ने उन पर नानाविध भयंकर
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