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शुभकामना एवं श्रद्धार्चन वन्दन कृपा निधान
नवदीक्षित 'रतन मुनि' (मेवाड़ मू० पं० श्री प्रतापमलजी म० के शिष्य)
(तर्ज-देख तेरे संसार.......) धन्य-धन्य कस्तूर गुरुवर, गुणरत्नों की खान ।
जग में जीवन अति महान् । करुणा सागर, विमल गुणाकर, करें सभी गुणगान ।
जग में जीवन अति महान् ॥टेर।। नगर 'जावरा' है अति प्यारा, जहां आपने जन्म है धारा । पिता 'रतिचन्द' कुल उजियारा, 'फूली माँ' का मोहनगारा ॥ उन्नीसौ-उनपचास मांही, लिया जन्म यहाँ आन ॥१॥ शुभ संस्कार पूर्व के भारी, ज्ञान प्राप्ति की रुचि तुम्हारी। गुरु 'खूबचन्द जी' अणगारी, उनकी शिक्षा तुमने धारी॥ विनय-विवेक बुद्धि से गुरुवर पाया आगम ज्ञान ॥२॥ कई भाषाओं को पाया है, प्राकृत पर अति मन छाया है। ज्योतिष ज्ञान भी तुम पाया है, आगम निधि भी कहलाया है ।। फिर भी गर्व कभी नहीं करते, जिन शासन की शान ।।३।। धर्म प्रभावना बढ़ा रहे हो, पतित-पावन बना रहे हो। ठाठ सुहाना लगा रहे हो, अन्तर मन को जगा रहे हो । 'रतन मनि' चरणों में करता वन्दन, कृपा निधान ॥४॥
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