________________
१९१
शुभकामना एवं श्रद्धार्चन
(२१) गुरु प्रताप मेवाड़ भूषण हैं, इसी वर्ष के महा ज्ञानी। लक्ष्मीचंद-हीरा भी संयमी, बने तपस्वी गुण खानी ॥
(२२)
दीक्षा लेकर गुरु नन्द से, ज्ञान खजाना पाया है। श्रमण संघ का तुमने मुनिवर, गौरव अधिक बढ़ाया है।
(२३) संस्कृत-प्राकृत-हिन्दी अरु, गुजराती भाषा का है ज्ञान । जैन सूत्र आगम साहित्य में, बने आप मुनिवर विद्वान् ।।
____ (२४)
गतिशील अरु प्रयत्नशील भी, जीवन जग में है जगमग । संयम के ओ सबल सारथी ! सफल बने जग में पग-पग ।।
.(२५) शशि ज्योत्स्ना जैसे तुम्हारे, युगल नेत्र मन हरते हैं। अहिंसा-सत्य-प्रेम की वर्षा, निराबाध वे करते हैं।
सौम्य सुहाना चेहरा पावन, करता है अति आकर्षित । देख-देख हर जन मानस हो जाता, गुणिवर अति हर्षित ।।
(२७) शांति साधना सदा प्रिय है, पक्षपात का नहीं है नाम । हीरा-हीरा ही कहलाता, यथा नाम वैसे गुणधाम ।।
(२८) धीरज सम्बल सबल आपका, संयम में पूरा पुरुषार्थ । ज्ञान-दर्श-चारित्र अतुलित, लगे जोड़ने प्यारा अर्थ ।।
प्रकृति के हैं सरल सुधाकर, मृदुता के महनीय भण्डार । निर्मल सुरसरि सम जीवन है, पूरे पावन करुणागार ॥
भव्य भाल पर तेज निखरता, ज्यों जानो भाष्कर का ओज । श्रमण संघ के शुभ्र समुद' में, जैसे खिल रहा सुखद सरोज ॥
१
समुद्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org