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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
चरण-वन्दना
वाले,
जिनेन्द्र मुनि 'काव्यतीर्थ' हीरे तुल्य चमकने मुनिवर हीरालाल महान् । आगम तत्त्व विशारद जिनका, प्रवर्तकों में ऊँचा स्थान ॥
छोटे बड़े सभी सन्तों का, आप सदा करते सम्मान | इसीलिए है सबके मन में, महामुनि का ऊंचा स्थान
॥
भूले-भटके पथिकों के हित, मुनि होते हैं एक प्रकाश । अमरों और नरों का होता, सत्य साधनों पर विश्वास ||
सरल सुगम्य विवेचन द्वारा, देते जनता को प्रतिबोध । श्रोताओं को आया करता, एक नया आमोद-प्रमोद ||
आराधना अमर करते हैं, सत्य साधना के हामी । विराधना के प्रबल विरोधी, वीर मार्ग के अनुगामी ॥
देश समाज राष्ट्र के हित में, लगा दिया जीवन सारा । एक त्याग के सम्मुख झुकता, त्रिभुवन का तन-मन प्यारा ॥
श्रद्धांजलियाँ स्वीकृत करके, हमको उपकृत आप करें। रही खामियाँ त्रुटियाँ जो भी, उदारता से माफ करें ॥
'मुनि जिनेन्द्र' वन्दन करता, श्री हीरा मुनि के चरणों में । सन्तों का शरणा होता है, चारों मंगल शरणों में ॥
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