________________
शुभकामना एवं श्रद्धार्चन
२०३
मालवरत्न श्री कस्तूर
बी० विमल कुमार शंका, नौमाज वाला मालव रत्न श्री कस्तूर की गाथा रही है,
गौरवमयी महा महत्ती यश धारी। जन्मे जावरा शहर पिता रत्तीचन्न
_ और थी फूली बाई आप की मात महतारी॥ वय तेरह के होते ही स्वीकारी खुद ने
जैन भगवती मन भावनी संयमी दीक्षा। बढ़ प्रगति पथ करत धर्म अभ्यास
ली हमेशा ही सात्विक भोजनी भिक्षा ॥ कस्तूरी ज्यों मृगनाभि रहती स्थित त्यों।
शास्त्र ज्ञान इनके हृदय गहन सबने माना है। हिन्दी, प्राकृत पढ़, संस्कृत पढ़े फिर ज्योतिष,
ज्ञान हासिल करना भावना इनने मन ठाना है। संयमी रश्मियां करते विकसित जैनी सन्त,
मग की यश कीर्ति जग में बढ़ अनुपम जगाई। बन यशस्वी कर्म धीरा गुरु खूब को,
जग में खूब चमक जैनत्व की दुन्दुभि महती बजाई ॥ हो आज भी हे मुनि जी हिम्मत में,
हिमालय गंगा से पावन अनमोल निधि जैन जगति में । मानता आप को तीर्थ धाम सारा ही मालव,
और हो श्रमण पूरे संयम त्याग और ईश भक्ति में । हे कर्मवीर, हे समता रस सागर कितना भी
यशगान करूं' तो कम ही है यह तुम्हारा। होवे जब ग्रन्थ में, छप कर तुम्हारा,
अभिनन्दन श्रद्धा से नत मस्तक हो चरणों में हमारा ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org