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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज अभिनन्दन शत-शत बार
कगि प्रियंकर
धरती हँसती है अम्बर भी, अभिनव गीत सुनाता है। हीरक मुनि के श्री चरणों में, कवि शुभ अर्ध चढ़ाता है ।। अर्घ शान्ति का, प्रेम-दया, विश्वास-मनुजता श्रद्धा का। सत्य-अहिंसा-आत्म धर्म क', सर्वोदय-तप निष्ठा का । खण्ड-खण्ड हो रहे जगत् को, मुनिश्री एक बनाते हैं। इसीलिए तो क्षितिज झूमता, दिग्पति शंख बजाते हैं। अटल अहिंसा के व्रतधारी, करुणा धन तप-पूरित हैं। कविता नहीं हृदय की अञ्जलि, सादर आज समर्पित है ।।
२)
एक सुई की नोक बराबर, भूमि बन्धु को दे न सके । वे कौरव थे इतिहासों में, नाम स्वयं का कर न सके । युद्धों से ही सभी समस्या, हल होती थी द्वापर में। जब कि स्वयं वासुदेव कृष्ण का, अनुशासन था घर-घर में ।। किन्तु आज श्री हीरामुन्जिी , शान्ति मार्ग बतलाते हैं। दया-धर्म और सत्य-अहिंसा, का सन्देश सुनाते हैं । नरता का निर्माल्य अपरिमित, जन-गण मन को अर्पित है। कविता नहीं हृदय की अञ्जलि, मुनि चरणों में वंदित है ।।
शस्य - श्यामला भारतमाता, भूल गई अपने दुखड़े। हिंसक भूल गये हिंसा का, जीव दया के रत्न जड़े । उत्तर - दक्षिण-पूरव-पश्चिम, गगन धरा पाताल सभी। हीरक मुनि के वचनामृत से कण-कण रहता मुखर अभी ।। संत-शिरोमणि, शान्ति-मूर्ति, मुनि हीरालाल सुहाते हैं। हीरक-प्रवचन की इस निधि का, मंगल कोष लुटाते हैं। सत्य-अहिंसा-शान्ति-दया ही, महासन्त का अमृत है। कविता नहीं हृदय की अञ्जलि, संत-चरण में अर्पित है।
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